राम का नाम मन में बसा लीजिये

बस इतना वरदान रहे


फागुन

क्या फायदा

पहचान

श्री लक्ष्मण मूर्छा एवं प्रभु की मनोदशा

माँ

मुक्तक

खयाल तेरी तरफ गया

चाहत

अनकही एक कहानी

रुक ना जाना तुम मुसाफिर

विधना का लेख

मुक्तक

तब जाकर बनती है कविता

बिन संघर्षों के जीवन में पाया उसका मोल नहीं

कर्तव्य पथ

बनारस

बदली यादों की

माहिया

व्याकरण की पृष्ठभूमी पर उठाती उँगलियाँ।

मुक्तक

कुछ पल खातिर आ जाओ

काशी के महिमा

मुक्तक

देख कर गीत तुमको मचलने लगे

विदाई की घड़ी

ऐसे ही बस हँसते रहना

एक उम्र का सफर

आओ ऐसे प्यार करें

दर्द काली रात का

मुक्तक

मौन तुम्हारा पथ तकते हैं।

बाकी है वरदान अभी

फिर कुहासे भरे दिन आ गये।

समर्पण

मेरे दिल तक नहीं पहुँची

दोहा

सर्व भव निरोगः

चौपाई

भाई

जिंदगी ये छाँव है

सुख का वनवास न हो

छठ

चाँद से प्रश्न

कोशिश

कशिश

भूली-बिसरी यादें

मुक्तक

ख्वाहिशें

मुस्कुराहट

अफसोस नहीं

कविता

तुम बिन अब तो ये घर हमको खाली खाली लगता है।

मेहमान

है विनती रघुराई

स्वप्न

पलकों ने सपने छाँटे हैं

भजन

श्री राम स्तुति

मुक्त रचना- जीवन का ग्रंथ

पालकी गीतों की

अय्यारी, अंदाजा

संशय के पल

मुझे पाओगे

प्रीत का नया राग

गजल- लम्हे का दर्द

अहसास
अहसास
इक बार कभी जो वक्त मिले,
बीती पर नजर फिरा लेना।
भूले बिसरे अहसासों को,
बस हौले से सहला लेना।
हैं कहीं सुलगते भाव कभी,
हैं कहीं धड़कती आशाएँ ।
कहीं सुनहरे ख्वाब सुहाने,
कहीं प्रेम की परिभाषाएं।
भावों के सागर में खुद को,
बरबस यूँ ही नहला लेना।
भूले बिसरे अहसासों को,
बस हौले से सहला लेना।
सुख भरे सुनहरे हैं बादल,
विश्वास प्रेम जीवन साथी।
आशाएँ अवलोकन करती,
इच्छाएं सारी मदमाती।
इन इच्छाओं के आँचल में,
मन को यूँ ही बहला लेना।
भूले बिसरे अहसासों को,
बस हौले से सहला लेना।
सृजन युक्त जीवन की राहें,
मंजिल को तकती हैं बाहें।
दूर गगन में ढलता सूरज,
हैं मलय महकती आशाएँ।
आशाओं की बाती लेकर,
फिर से नवदीप जला लेना।
भूले बिसरे अहसासों को,
बस हौले से सहला लेना।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद

ग़ज़ल- तेरे करीब आने से

गजल- दिल के पास

गजल-मुझसे कहते यहाँ

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राम-नाम सत्य जगत में राम-नाम बस सत्य जगत में और झूठे सब बेपार, ज्ञान ध्यान तप त्याग तपस्या बस ये है भक्ति का सार। तन मन धन सब अर्पित प्रभु क...
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कितना देखा भाला लेकिन कुछ भी जान नहीं पाये। थी पहचानी गलियाँ लेकिन कुछ अनुमान नहीं पाये। पल-पल भेष बदलते देखा क्या जाने क्या अनजाने, अपनी ही...