चाहत
जो साँसों की जरूरत है तो इसकी राहतें तुम हो।
नहीं तुम बिन कोई मंजिल नहीं कोई किनारा है
जो भाये इन किनारों को वो इसकी आदतें तुम हो
नहीं मुमकिन गुजारूँ जिंदगी तन्हा मैं आहों में
ये तन्हाई मिटा दे जो वो इसकी आहटें तुम हो
बिछे हैं हर कदम जो फूल मेरे गीतों की राहों में
जो मेरे गीत साँसें हैं तो इनकी राहतें तुम हो
कहाँ जाऊँ छुड़ाकर हाथ नहीं कोई सहारा है
बसे हो देव पलकों में अब इसकी आदतें तुम हो
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
15 फरवरी, 2024
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