क्या बताऊँ जो देखा वो मंजर कैसा है
जरा हवा क्या चली जो छुपने लगे ओट में
क्या बताऊँ उन्हें जो बीती बवंडर कैसा है
जिनको चाहा यहाँ स्वयं को भूलकर
हाथों में उनके ये खंजर कैसा है
जीतने को जीत लेते हम हर एक युद्ध को
पर दिल जो न जीते वो सिकन्दर कैसा है
माना उन्हें अब मेरी जरूरत नहीं है देव
पर ये बेचैनियों का समंदर कैसा है
✍️अजय कुमार पाण्डेय
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