मौन तुम्हारा पथ तकते हैं।
पलकों की आहट में छिपकर बैठी ज्यूँ आँखों का पानी।
आते जाते पल छिन पल छिन सूनी आँखों को मलते हैं,
मौन तुम्हारा पथ तकते हैं।
रोज भोर इक नई कहानी लेकर आँगन में आती है,
जागे नयनों के सपनों को नूतन आहट दे जाती है।
टुकड़ा कहीं धूप का छिपकर भावों को सहला जाता है,
झोंका मस्त पवन के आकर साँसों को महका जाता है।
दर्द रात का सभी भूलकर नव उम्मीदों को गढ़ते हैं,
मौन तुम्हारा पथ तकते हैं।
यादों के मानसरोवर में दो हंस मौन जब मिलते हैं,
अंतस के नील सरोवर में नव प्रेम पुष्प फिर खिलते हैं।
दूर कहीं मन की बस्ती में सूनी आस जगा जाती है,
बीते सभी उपालंभों को हौले से समझा जाती है।
नई भोर में नई आस ले सारा दिवस सफर करते हैं
मौन तुम्हारा पथ तकते हैं।
उम्र घटेगी भले हमारी लेकिन मन में प्रेम बढ़ेगा,
यहाँ जलेगा हृदय हमारा वहाँ तुम्हारा मन तड़पेगा।
भीड़ भरे एकाकीपन में बीते लम्हों को खोजेंगे,
दूर जहाँ तक नजर पड़ेगी केवल तुमको ही ढूँढेंगे।
मन के भाव पृष्ठ पर लिख कर तुमको सब अर्पित करते हैं,
मौन तुम्हारा पथ तकते हैं।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
07 दिसंबर, 2024
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