मुक्तक
कुछ उम्मीदें तेरी टूटी और कुछ टूटी मेरी थीं।
इस हृदय के सूनेपन ने वीथी पर देखा जब मुड़कर,
कुछ तेरी यादें छूटी थीं और कुछ छूटी मेरी थीं।
इन यादों को सिरहाने रख जब कभी अकेले हो लेता हूँ।
दुनिया की इस महफ़िल में साथी मैं भी खुद को खो लेता हूँ।
क्या कहना क्या सुनना साथी अब और नहीं अफसोस मुझे है,
अब स्वयं अकेले हँस लेता हूँ और अकेले रो लेता हूँ।
भीड़ भरी तन्हाई में मैं मौन अकेले रह लेता हूँ।
आहें आँसू रस्में कसमें सभी अकेले सह लेता हूँ।
है बहुत जताया इस दुनिया ने हमदर्दी अब और नहीं,
मन ही मन बातें करता हूँ मन से मन की कह लेता हूँ।
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