समर्पण

समर्पण

जिस पथ ने स्नेह दिया मुझको, उसको मन प्राण समर्पित है,
जिस पथ ने मुझको ठुकराया, उसको भी गान समर्पित है।

जीवन के हर पथ पर मन ने, जो पाया उसका मान किया,
विष पाया या अमृत पाया, अधरों ने उसका पान किया।
जिसने अधरों को तृप्त किया, उसको मन प्राण समर्पित है,
जिसने अधरों को तप्त किया, उसको भी गान समर्पित है।

पग साथ चले कुछ चले नहीं, कुछ साथ रहे कुछ रहे नहीं,
कुछ पुष्प खिले कुछ खिले नहीं, कुछ भाव कहे कुछ कहे नहीं।
जिसने भावों को व्यक्त किया, उसको मन प्राण समर्पित है,
जिसने मन को अभिशप्त किया, उसको भी गान समर्पित है।

दो शब्द गीत के क्या गाये, आहों से गूँज उठा जीवन,
दो पुष्प हृदय के यूँ पनपे, आहों से खीझ उठा उपवन।
जिन गीतों में मधुपान किया, उसको मन प्राण समर्पित है,
जिसने मन का अपमान किया, उनको भी गान समर्पित है।

जो सपने जीवन के उलझे, अब उनका क्यूँ अफसोस करूँ,
शब्दों पर अपने ना ठहरे, अब उनसे क्यूँ अनुरोध करूँ।
जिसने पलकों को सहलाया, उसको मन प्राण समर्पित है,
जिसने आँसू को ठुकराया, उसको भी गान समर्पित है।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        27 नवंबर, 2024



 


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