है विनती रघुराई

है विनती रघुराई

यह विनती तुमसे रघुराई। हरहु क्लेश विषाद मन माहीं।।
भरहु आस विश्वास भरोसा। मिटइ सबहिं के मन के दोषा।।
धरम भाव सब के मन लावा। उपजहिं सबहि हृदय समभावा।।
सुमति भाव जिनके मन छाई। अनुदिन बढ़े प्रेम अधिकाई।।

कुटिल भाव सब नष्ट हो, अंतस हो शुभ धाम।
शुद्ध चित्त सुमिरन करें, ले कर प्रभु का नाम।। 

सदाचार सुंदर पथ जग में। कटे कष्ट सबही यहि डग में।।
पग-पग कंटक कितनो भारी। राम नाम सब कंटक टारी।।
कलयुग में प्रभु नाम अधारा। छूटहिं क्लेश प्रेम विस्तारा।।
जिनके हिरदय प्रेम बसे है। उनके हिरदय राम बसे हैं।।

भक्ति भाव जा मन बसे, हृदय बसे अनुराग।
ज्ञान ध्यान संपति बढ़े, होत हृदय बड़भाग।।

जपहुँ राम सुंदर मन होई। मिटे कष्ट सुंदर तन होई।।
जपहुँ प्रभु नाम हैं बहुतेरे। ये विपत काल कबहुँ न घेरे।।
श्रद्धा सबुरी त्याग समर्पण। चित्त शुद्ध मन होवे दर्पण।।
निर्मल मन हो सत्य सनातन। जीवन का कण-कण हो पावन।।

जीवन का आधार है, प्रभु का सुंदर नाम।
यहिं जीवन के मूल हैं, कृष्ण कहो या राम।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        08अक्टूबर, 2024




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