बस इतना वरदान रहे

बस इतना वरदान रहे

और नहीं कुछ चाह हृदय की बस इतना वरदान रहे,
जीवन के इस महापरिधि में और न कुछ व्यवधान रहे।
हर कर्तव्यों की त्रिज्या हो जो चारों ओर बराबर हो,
उम्मीदों के महासिंधु में पावनता न्योछावर हो।
अधिकारों की पृष्ठभूमि पर जीवन का कुछ मान रहे,
और नहीं कुछ चाह हृदय की बस इतना वरदान रहे।

स्वप्न सरीखी पगडंडी पर पदचिन्हों का आवाहन,
पुण्य भाव के श्रेष्ठ कलश से जीवन बने नहावन।
वेद ग्रन्थ की वाणी गुंजित गंगाजल पावन अमृत,
गीता और पुराणों से हो रोम-रोम जीवन पुलकित।
जिह्वा से आवाहन हो जब मंत्रों का संज्ञान रहे,
और नहीं कुछ चाह हृदय की बस इतना वरदान रहे।

शिक्षा संस्कृति और ज्ञान से राष्ट्र मार्ग आलोकित हो,
स्वस्थ आचरण और सभ्यता से जीवन अनुमोदित हो।
स्वार्थ रहित हो भाव हृदय के सबसे सबका अपनापन,
सत्य धर्म के ज्योति पुंज से मिट जाये सारा सूनापन।
पुण्य पंथ में इस जीवन के नहीं कभी व्यवधान रहे,
और नहीं कुछ चाह हृदय की बस इतना वरदान रहे।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        29 मार्च, 2025

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