कुछ पल खातिर आ जाओ
जाना तो इक रोज यहाँ है, कुछ पल खातिर ही आ जाओ।
धूल धूसरित यादें मन की, झुरमुट में छुपी कहानी है,
तुम से तुम तक जो जाती है, वो हमको आज सुनानी है।
यादों के मान सरोवर में, नील कमल वही खिला जाओ,
जाना तो इक रोज यहाँ है, कुछ पल खातिर ही आ जाओ।
शब्द-शब्द की सीमायें हैं, भावों पर अवरोध नहीं है,
कितने गीत लिखे जगती पर, इसका भी अब बोध नहीं है।
शब्दों की हर सीमाओं का, तुम बोध कराने आ जाओ,
जाना तो इक रोज यहाँ है, कुछ पल खातिर ही आ जाओ।
आँसू भी अच्छे लगते हैं, जब तक खुशियों के होते हैं,
गिर पड़ते हैं बिछड़ कोर से, आहों को वो कब ढोते हैं।
आँसू के हर इक भावों का, अब मर्म बताने आ जाओ,
जाना तो इक रोज यहाँ है, कुछ पल खातिर ही आ जाओ।
इस दुनिया से जाने वाले, यादों में जिंदा रहते हैं,
और कभी मन की खिड़की से, पृष्ठों पर छपते रहते हैं।
बन जाये ना कहीं कथानक, अपनी पहचान बता जाओ,
जाना तो इक रोज यहाँ है, कुछ पल खातिर ही आ जाओ।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
06 जनवरी, 2024
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