क्या फायदा
कितने आये-गये नेह की राह में, पर किसी को हृदय ने पुकारा नहीं,
गीत कितने लिखे प्रेम की चाह के, पर किसी को हृदय में उतारा नहीं।
बाद उनके हृदय को न भाया कोई, और से दिल लगाने का क्या फायदा।
करते क्या कामना हम खुशी की यहाँ, दर्द ने जब हृदय को सहारा दिया,
पास रहकर भी जब पास हो ना सके, अश्रु ने तब हृदय को सहारा दिया।
अश्रु जब गिर पड़े नैन के कोर से, नैन से दिल लगाने का क्या फायदा।
लोग कहते रहे प्रेम इक रोग है, दिल ने लेकिन कभी इसको माना नहीं,
जिसने छोड़ा हमें ये वही लोग हैं, कौन अपना पराया ये जाना नहीं।
प्रेम ही रोग जब बन गया हो यहाँ, गैर को दोष देने का क्या फायदा।
जीतता क्या किसी से यहाँ युद्ध में, जब किसी को हराना नहीं चाहता,
ऐसे बरसे नयन प्रेम की राह में, दिल किसी से लगाना नहीं चाहता।
हार में जीत की आस जगने लगे, जीत कर हार जाने का क्या फायदा।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
14 मार्च, 2025
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें