मुक्तक

मुक्तक

दो बूँद खुशी के क्या छलके दुनिया ने बेहाल किया।
नख से लेकर शिख तक जाने क्या सबने पड़ताल किया।
ऐसे उलझे खोज-बीन में नयन कोर हालातों के,
गालों पर आने से पहले खुशियों ने हड़ताल किया।
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बहुत मुश्किल है परदेसी गाँवों को भुला पाना।
बहुत मुश्किल है खेतों को गलियों को भुला पाना।
भले हो रोशनी कितनी शहर की बंद गलियों में,
बहुत मुश्किल अँधियारों के दीपक को भुला पाना।
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आईने को देखता जब हैरान देखता हूँ।
इस गली में हर शख्स परेशान देखता हूँ।
तलाश में सुकूँ की भटका हूँ इस कदर मैं,
निकल के अपने घर से अब मकां देखता हूँ।
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मुश्किलें हैं माना जिंदगी का सफर आसान तो नहीं।
पर जिंदगी की मुश्किलों से इतना परेशान तो नहीं।
क्या हो जायेगा किसी का दो घड़ी साथ चल देंगे हम,
दो कदम को साथ चलने से किसी का नुकसान तो नहीं।
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इक रोशनी की चाहत में अब तलक जलता रहा हूँ मैं।
पत्थर था पर बन के मोम अकसर पिघलता रहा हूँ मैं।
मिली होगी किसी को जिंदगी जरा ही दूर जाने पर,
तुझे पाने की ख्वाहिश में अभी भी चलता रहा हूँ मैं।
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बहुत खोया हूँ राहों में तुम्हारे पास आने को।
बहुत खोजा हूँ मैं खुद को महज अहसास पाने को।
चल सकता हूँ अकेले मैं यहाँ दुनिया की राहों में,
मगर चाहत है इस दिल की तुम्हारा साथ पाने को।
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