कर्तव्य पथ

कर्तव्य पथ

हार पर चीत्कार क्यूँ हो जीत का उल्लास क्यूँ हो,
जो मिला है आज पथ पर प्रभु शीश पर उसको धरूँ,
सामर्थ्य इतना दो मुझे कर्तव्य पथ पर चल सकूँ।

पथ कंटकों से हों भरे अवरोध हों चाहे भरे,
चाहे शिलाएं शीर्ष तक या सूझे कुछ भी न परे।
ये रात काली हो भले या काल सी लंबी भले,
हों बंद सारे रास्ते और रोशनी कुछ ना मिले।

अब क्यूँ अँधेरों से डरूँ जब शीश प्रभु का हाथ हो,
सामर्थ्य इतना दो मुझे कर्तव्य पथ पर चल सकूँ।

दर्द का साम्राज्य हो या वेदना चारों तरफ हो,
भ्रम का पारावार हो अनभिज्ञता चारों तरफ हो।
थक चुके हों पैर चाहे या शूल कितने हों चुभे,
टिमटिमाती रोशनी के दीपक भले बुझते रहें।

वेदना अज्ञानता में प्रभु ज्ञान का उपहार हो,
सामर्थ्य इतना दो मुझे कर्तव्य पथ पर चल सकूँ।

अब हो भला चाहे बुरा परिणाम सब स्वीकार है,
मैं दोष माथे पर मढूँ मुझको नहीं अधिकार है।
जो कुछ मिला मुझको जगत में आपका आशीष है,
द्वार पर प्रभु आपके प्रतिपल झुका मेरा शीश है।

कर्तव्य पथ पर चल सकूँ शीर्ष मेरा व्यवहार हो,
सामर्थ्य इतना दो मुझे कर्तव्य पथ पर चल सकूँ।

✍️©अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        28 जनवरी, 2024



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