बदली यादों की
गीतों का रूप दिया साथी।
मेरे मन के इन गीतों को,
आ धीरे से सहला जाना।
यादों की बदली जब छाए,
बरखा बन साथी आ जाना।
कुछ दूर रहे कुछ पास रहे,
कुछ भूल गये कुछ याद रहे।
कुछ पलकों के दरवाजे पे,
गुमसुम-गुमसुम चुपचाप रहे।
कुछ बूँदें बनकर बिखर गए,
कुछ गिरने को बेताब रहे।
बेताबी के उन भावों को,
गीतों का रूप दिया साथी।
बेताबी के इन भावों को,
तुम धीरे से बहला जाना।
यादों की बदली जब छाए,
बरखा बन साथी आ जाना।
गलियों-गलियों बस्ती-बस्ती,
हर मोड़-मोड़ पे देखा है।
जंगल-जंगल शहरों-शहरों,
पग-पग इक जीवन रेखा है।
परबत-परबत सागर-सागर,
जानी पहचानी रेखा है।
रेखाओं की पृष्ठभूमि में,
रंगों से भाव भरा साथी।
रेखाओं के इन रंगों में,
कुछ तुम भी रंग मिला जाना।
यादों की बदली जब छाए,
बरखा बन साथी आ जाना।
जब सांध्य ढले गोधूली में,
सूरज मद्धम हो जायेगा।
दूर क्षितिज जब सागर तल में,
चुपके-चुपके खो जायेगा।
जीवन की गोधूली में जब,
पतझड़ का मौसम आयेगा।
पतझड़ के वो सूखे मौसम,
फिर पुष्पित हो जायें साथी।
पलकों के नील सरोवर में,
फिर नूतन स्वप्न खिला जाना।
यादों की बदली जब छाए,
बरखा बन साथी आ जाना।
✍️©अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
22 जनवरी, 2024
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