मुक्तक

मुक्तक

कि इन पलकों में सपनों को सँजोना चाहता हूँ मैं।
के खुशियों की फुहारों से भिंगोना चाहता हूँ मैं।
कहूँ कितना मैं भटका हूँ दिलों की राजधानी में,
पलक के कोर में छोटा सा कोना चाहता हूँ मैं।

हजारों बात हैं लेकिन न कोई बात आयी है।
तुम्हारी याद न आये न ऐसी रात आयी है।
मिरे सपने मेरी यादें हैं सभी कुछ साक्षी इसके,
बिना तेरे सितारों की नहीं बारात आयी है।

कि लिखे जो गीत चाहत के सुनाना चाहता हूँ मैं।
हमारे दिल में है क्या-क्या जताना चाहता हूँ मैं।
बिना तेरे सफर दिल का अधूरा मुझको लगता है,
बस इतनी बात इस दिल की बताना चाहता हूँ मैं।

पुराने दोस्त यादों की विरासत साथ रखते हैं।
नजर से टोह रखते हैं नजाकत साथ रखते हैं।
बिना बोले हृदय की बात सारी जान जाते हैं,
दिल को जीत लेती हो वो आदत साथ रखते हैं।

सफर हो खुशनुमा सबका इबादत रोज करता हूँ।
खुशी की चाह रखता हूँ नजर को तेज रखता हूँ।
हजारों ख्वाहिशों का बोझ काँधों पे लिये हरदम,
छुपा कर ख्वाहिशें अपनी सफर हर रोज करता हूँ।

तुम्हारे बीच मेरे बीच अभी कुछ बात बाकी है।
है कहीं कुछ तो बचा ऐसा कि जो जज्बात बाकी है।
ये मेरी हिचकियाँ मुझको यूँ ही सोने नहीं देती,
कहीं दिल में तुम्हारे अब भी मेरी याद बाकी है।

बिना तेरे निगाहों को कहीं अच्छा नहीं लगता।
कहे कुछ भी कहीं कोई मगर अच्छा नहीं लगता।
कैसी कशमकश है मेरे दिल की राजधानी में,
हजारों हैं निगाहों में मगर सच्चा नहीं लगता।

समझता हूँ दिलों की मैं तुम्हारी भावनाओं को।
समझता हूँ इशारों को तुम्हारी कामनाओं को।
नहीं समझो के पत्थर हूँ कहीं मजबूरियाँ कुछ हैं,
समझता हूँ हमारे दिल की सारी आशनाओं को।

मेरे हर गम-खुशी में बस तुम्हारा नाम आयेगा।
मेरे हर गीत गजलों में तुम्हारा नाम आयेगा।
अब मिले बदनामियाँ कितनी मुझे चाहे जमाने में,
मेरी बदनामियों में भी तुम्हारा नाम आयेगा।

ना है शिकवा जमाने से नहीं कोई शिकायत है।
नहीं रुसवाईयाँ कोई नहीं कोई अदावत है।
जैसा भी हूँ मैं वैसा तुम्हारे सामने ही हूँ,
के तुम मानो या न मानो नहीं कोई मिलावट है।

दिल में कितनी कहानी छुपाये हुए।
कितने लम्हें हुये गुनगुनाये हुए।
बिन तेरे अब कहीं गीत सजते नहीं,
कितनी सदियाँ हुईं ये जताये हुए।

एक वादा मिलन का अधूरा रहा।
हर इरादा नयन का अधूरा रहा।
उम्र भर इक कमी सी कहीं रह गयी,
उम्र को गुनगुनाना अधूरा रहा।

वक्त का क्या पता कब गुजर जायेगा।
रेत सा हाथ से कब बिखर जायेगा।
इस घड़ी में चलो एक हो जायें हम,
कौन जाने कहाँ कब बिछड़ जायेगा।

मैं वही तुम वही और वही रास्ता।
कैसे कह दें नही अब कोई वास्ता।
बिन कथानक कहानी अधूरी है ये,
बन सकेगी नहीं फिर कोई दास्ताँ।

दौड़ता ही रहा जिस खुशी के लिये
वो खुशी आज तक भी मिली ही नहीं।
चलते-चलते यहाँ पांव थकते रहे
छाँव लेकिन कहीं भी मिली ही नहीं।
दिन गुजरता रहा रात होती रही
चांदनी पर कभी भी खिली ही नहीं।

नयन के कोर ये यूँ ही नहीं गीले हुए होंगे।
हृदय की भावनाएं दर्द से गीले हुए होंगे।
कि हिचकी बताती है तुम्हारे दिल के हालत को,
बिन मौसम हुई बरसात नयन गीले हुए होंगे।

तुम्हारे पास कहने के बहाने कम नहीं होंगे।
तुम्हारे चाहने वाले दिवाने कम नहीं होंगे।
बहुत अफसोस होगा तुमको इक दिन इस अदावत पे,
बहुत होंगे तुम्हारे पास लेकिन हम नहीं होंगे।

के नदिया को समंदर के मुहाने की जरूरत है।
ये लहरों के मचलकर पास आने की जरूरत है।
नहीं ऐसा के नदिया को समंदर ही सहारा है,
समंदर को भी नदिया के सहारे की जरूरत है।

सुहाने थे पुराने दिन वो अकसर याद आते हैं।
बिताए पल जो अकसर साथ में वो याद आते हैं।
चले जाते हैं अकसर छोड़ कितने बीच राहों में,
मगर इन दूरियों में भी दिलों को पास लाते हैं।


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