ग़ज़ल- तेरे करीब आने से

तेरे करीब आने से

एक तेरे करीब आने से
मैं हुआ दूर इस जमाने से

लगता खुद से ही न उलझ जाऊँ
एक तुझसे ही दिल लगाने से

अब तो हर राह प्रश्न करती है
तेरी राहों में आने जाने से

अब तो साकी भी गैर लगता है
खाली लौटा हूँ मैं मैखाने से

भूल जाता हूँ सारे जख्मों को
एक बस तेरे मुस्कुराने से

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        10 सितंबर, 2024

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