भजन



सखि मन अनुबंध कियो जबसे, मन में प्रभु प्रीत समाय गयी,
सुध बुध बिसराय गयी सबहीं, बस तुमसे प्रीत लगाय गयी।
जागत सोअत बस नाम रटे, कछु और नहीं मन भावत है,
सब चैन गँवाय गयी मन से, बस चैन तुमहि में पावत है।
जस मीरा को स्वीकार किये, प्रभु हमको भी आ स्वीकारो,
बस तुमसे ही सब आस बँधी, आकर हमरो भी उद्धारो।
जग लोभ मोह से पीड़ित है, मन प्रतिपल है अवसाद ग्रसित,
प्रभु पुनि उपदेश सुना जाओ, मन क्षोभ-क्रोध से होत त्रसित।
जस द्रौपदि की प्रभु लाज रखो, सुख चैन छोड़ के बाँह धरो,
हमरी भी विनती स्वीकारो, सर पर हमरे भी छाँह करो।
जस अर्जुन को उपदेश दियो, मन से अज्ञान प्रभु सबहि हरो,
अँधियारे में मन भटकत है, अवसाद सबहि प्रभु आय हरो।
अब और नहीँ पथ सूझत है, आकर अब राह दिखा जाओ,
सब किंतु-परन्तु हटे मन के, आकर प्रभु आस बँधा जाओ।

©✍️ अजय कुमार पाण्डेय
         हैदराबाद
         24 सितंबर, 2024

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