विदाई की घड़ी

विदाई की घड़ी

इस विदाई की घड़ी में वेदना बन गीत छलके,
गीत की उन पंक्तियों से देख लो घबरा न जाना।

मै नहीँ हूँ तुम नहीं हो है समय का खेल सारा,
क्या करेंगे जान कर अब कौन जीता कौन हारा।
इस समय के खेल में जब आह बनकर गीत छलके,
अश्रु की उस भावना से देख लो घबरा न जाना।

इस हृदय के कोर में जो पत्र अब तक हैं अधूरे,
रो पड़ेंगे पत्र सारे हो सके न क्यूँ वो पूरे।
वो अधूरी कामना फिर गिर पड़े जब अश्रु बनके,
गीत की उन पंक्तियों से देख लो घबरा न जाना।

हो रहें हम दूर कितने पर जमाना जानता है,
जो रचे हैं गीत हमने गुनगुनाना जानता है।
गीत की उन पंक्तियों से जब हृदय में प्रीत छलके,
प्रीत की उन पंक्तियों से देख लो घबरा न जाना।

ये विरह की भी घड़ी है दे रही कुछ तो निशानी,
आँख भी जल में विलय हो लिख रही मन की कहानी।
इस विलय से दर्द को जब हार में भी जीत छलके,
जीत की उन पंक्तियों से देख लो घबरा न जाना।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        22 दिसंबर, 2024



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