पालकी गीतों की
सौंप सकूँ कुछ शब्द पुष्प मैं भावों के मृदु आँगन में,
लिए पालकी गीतों की मैं बस्ती-बस्ती फिरता हूँ।भाग दौड़ में इस जीवन के दृष्टि सभी की शिखरों पर,
स्पर्धा में एक दूजे से भाव सभी के चेहरों पर।
पर्वत जैसे शिखरों की उम्मीदें सबने पाली हैं।
शिखर पहुँच कर भी लगता है जैसे झोली खाली है।
कुछ खुशियाँ बस सौंप सकूँ मैं उम्मीदों के आँगन में,
लिए पालकी गीतों की मैं बस्ती-बस्ती फिरता हूँ।
रुका यहाँ कब पथ जीवन का बाधाओं के आने से,
रुका कहो कब पथ सूरज का धुंध घनेरी छाने से।
अवरोधों से लड़कर के भी गीत हवाएँ गाती हैं।
अँधियारे को चीर यहाँ पर भोर किरण मुस्काती है।
मुक्त हो सके मन आहों से अनुरोधों से बंधन से,
लिए पालकी गीतों की मैं बस्ती-बस्ती फिरता हूँ।
जीवन की हर बाजी खेली कुछ जीती कुछ हार गया,
कभी रहा इस पार तीर के और कभी उस पार गया।
बरसों बीत गए जीवन के मन में अब भी सिहरन है,
भीड़ भरे गलियारों में कुछ यादें अब भी बिरहन हैं।
विरह वेदना मिट जाये इन गीतों के अनुरंजन से,
लिए पालकी गीतों की मैं बस्ती-बस्ती फिरता हूँ।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
20 सितंबर, 2024
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