प्रीत का नया राग

प्रीत का नया राग

गीत का पंथ यूँ ही जगमगाता रहे,
हम चलो गीत को इक नया राग दें।

गीत बचपन का हो या जवानी का हो,
हर घड़ी गीत दिल गुनगुनाता रहे।
नेह का भाव हो या प्रेम की चाह हो,
हर घड़ी भाव मन ये सजाता रहे।
गीत से अंक यूँ ही मुस्कुराता रहे,
हम चलो गीत को इक नया राग दें।

फिर सजायें चलो हम छंद की वाटिका,
भाव के पुष्प से जो महकती रहे।
फिर चलो हम लिखें नव प्रीत की पुस्तिका,
हर घड़ी जो हृदय में चहकती रहे।
भाव का पंथ यूँ ही खिलखिलाता रहे
हम चलो भाव को इक नया राग दें।

जब सांध्य को ओढ़ कर रात सजने लगी,
प्रीत की मुद्रिका फिर चमकने लगी।
जब ओस की बूँद अधरों पे सजने लगी,
प्रीत बन दीपिका फिर दमकने लगी।
प्रीत बन दीपिका यूँ झिलमिलाती रहे,
हम चलो प्रीत को इक नया राग दें।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        16 सितंबर, 2024

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