भूली-बिसरी यादें
भूली बिसरी कितनी बातें बिना कहे कह जाती हैं।
मोड़ अधूरा राह अधूरी कुछ भी तो मालूम नहीं,
कौन राह पर चली जिंदगी साँसों को मालूम नहीं।
जब राहें कदमों को छूकर खुद बोझिल हो जाती हैं,
भूली बिसरी कितनी बातें बिना कहे कह जाती हैं।
दूर क्षितिज पर किरण पिघलती मौन सांध्य के आँचल में,
यादें इंद्रधनुष बनती हैं उम्मीदों के बादल में।
दूर किरण संध्या में घुलकर लुकछिप-लुकछिप जाती है,
भूली बिसरी कितनी बातें बिना कहे कह जाती हैं।
बाँह पसारे रात मचलती धीमे-धीमे मदमाती,
कहे अनकहे मधुमासों के गीतों में भींगी जाती।
मदमाते गीतों में बसकर अधरों को छू जाती हैं,
भूली बिसरी कितनी बातें बिना कहे कह जाती हैं।
✍️©अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
18 अक्टूबर, 202र
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