मुक्तक

जब-जब भी तू बढ़ेगा तेरे पास आऊँगा।
मैं रास्तों से तेरे सभी काँटे हटाऊँगा।
यहाँ जिंदगी की दौड़ में जब दोनों हों खड़े,
फिर तुझसे हार कर भी मैं तो जीत जाऊँगा।

जो मैं हूँ इक पतंग तो तू डोर है मेरी।
एक छोर मैं खड़ा तो दूजी छोर तू खड़ी।
अब बिन तेरे ये जिंदगी की जंग है कठिन,
जो हर कदम तू साथ है तो जीत है मेरी।

गीत में तू बसी प्रार्थना में बसी।
चाहतों में सजी कामना में सजी।
साँस की आस तुझसे जुड़ी इस तरह,
कल्पना में सजी भावना में बसी।

तुम्हारे वास्ते माँगूँ कहो तुम ही मैं क्या माँगूँ।
काँटे राह के चुन लूँ दुआयें जीत की माँगूँ।
करो गर तुम इशारा तो बनूँ परछाइयाँ तेरी,
तुम्हारी नींद मैं सोऊँ तुम्हारी नींद मैं जागूँ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

ऐसे भाव सजाना साथी

ऐसे भाव सजाना साथी गीतों की प्रिय मधुशाला से जब प्रेम पियाली छलकाना, दो बूँद अधर को छू जाये ऐसे भाव सजाना साथी। हमने भी कुछ गीत लिखे पर शायद...