मेरे दिल तक नहीं पहुँची

मेरे दिल तक नहीं पहुँची

पता था वो ही इस दिल का वही अपना ठिकाना था,
मगर चिट्ठी लिखी तुमने मेरे दिल तक नहीं पहुँची।

वो ही थे रास्ते अपने वो ही अपनी दिशाएं थीं,
वो ही मौसम सुहाने थे वही बहती हवायें थीं।
वही था आसमां अपना जहाँ कल आना जाना था,
मगर चिट्ठी लिखी तुमने मेरे दिल तक नहीं पहुँची।

कहीं चाहत के सपने थे कहीं कुछ कामनाएं थी,
कहीं यादों के झरने थे कहीं कुछ प्रार्थनाएँ थीं।
कहीं कुछ भावनाएं थीं जिन्हें अपना बनाना था,
मगर चिट्ठी लिखी तुमने मेरे दिल तक नहीं पहुँची।

कि इन गीतों में इस दिल के कहीं कुछ याद है बाकी,
कहीं कुछ तो अधूरा है जो ये फरियाद है बाकी।
अभी यादों की कतरन से वही रिश्ता पुराना था,
मगर चिट्ठी लिखी तुमने मेरे दिल तक नहीं पहुँची।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        27 नवंबर, 2024

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