बाकी है वरदान अभी
कभी भरे थे घट जीवन के और कभी ये रीत गए।
आधी गुजर चुकी सदियाँ आधी और गुजर जाएगी,
जीवन के इस महा परिधि में बाकी है वरदान अभी।
कितने सपने जोड़े मन ने कितने सपने टूट गए,
कितने अंकित हुए हृदय में कितने पथ में छूट गए।
इन हाथों ने कितने पकड़े कितने रिश्तों को जोड़े,
कितने श्वेत कबूतर मन ने नील गगन में जा छोड़े।
नील गगन में उड़ते-उड़ते बाकी बची सँवर जाएगी,
जीवन के इस महा परिधि में बाकी है वरदान अभी।
कितनी आग चुराई हमने कितनी आग बचाई है,
इस जीवन के हवन कुंड में समिधा स्वयं बनाई है।
सब कुछ देकर अपना हमने कितना कुछ अपनाया है,
खोने की क्या बात करें जब पग-पग इतना पाया है।
खोते पाते जीवन की बाकी सदी गुजर जाएगी,
जीवन के इस महा परिधि में बाकी है वरदान अभी।
बने बिगड़ते रिश्तों के मूल तत्व हम समझ न पाये,
समझ न पाई दुनिया या हम दुनिया को समझ न पाये।
कितने भाव समेटे मन में कितने मौन निहारे हैं,
कितने छोड़े यहाँ डगर में कितने पंथ बुहारे हैं।
तटबंधों को तोड़ लहर सागर में जा मिल जायेगी,
जीवन के इस महा परिधि में बाकी है वरदान अभी।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
30 नवंबर, 2024
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