सुख का वनवास न हो
दुख ने लंबे डग भर कर के सुख का पथ अवरोध किया,
अपना कौन पराया क्या है दुख ने इसका बोध दिया।
दुख ने माना पग बाँधा है लेकिन मन में वास न हो,
माना दुख की रात घनी है सुख का पर वनवास न हो।
जीवन भर कब कौन रहा है इक दिन सब खो जाता है,
जब-जब जो-जो होना है वो तब-तब सो हो जाता है।
अपने कर्तव्यों के पथ में कोई भी अवकाश न हो,
माना दुख की रात घनी है सुख का पर वनवास न हो।
साथ- साथ कितने चलते हैं कितने ही खो जाते हैं,
नयन कोर में बसे रहे कुछ, कुछ मिलकर खो जाते हैं।
चेहरों की भीड़ में लेकिन दर्पण का उपवास न हो,
माना दुख की रात घनी है सुख का पर वनवास न हो।
बीत चले कितने ही मधुऋतु यादों का बस गुंजन हो,
रीत चले कितने ही मधुघट प्यालों पर बस चुंबन हो।
इक दूजे का साथ रहे बस भले नया मधुमास न हो,
माना दुख की रात घनी है सुख का पर वनवास न हो।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
08 नवंबर, 2024
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