गजल- लम्हे का दर्द

लम्हे का दर्द

जिस घड़ी आँख मेरी ये नम हो गयी
पीर इस दिल की थोड़ी सी कम हो गयी

बात यूँ ही जो निकली थी लब से मेरे
बात वो ही मेरी अब कसम हो गयी

तुझसे मिलने की ख्वाहिश अधूरी रही
शुरू हो न पाई कहानी खतम हो गयी

मुझसे लमहा सँभाला गया न वहाँ
मेरी वो ही खता अब सितम हो गयी

देखता हूँ क्षितिज को बड़े गौर से
उम्र की एक और शाम कम हो गयी

 ©✍️अजय कुमार पाण्डेय
      हैदराबाद

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