फागुन
अधर खुले अधखुले ही रहे पर अधरों से प्रेम जता गयी गोरी।
रंग फागुन ऐसो चढो तन-मन पे और कहीं कुछ सूझत नाहीं,
के रंग-अबीर बिना नैनन से नैनों को रंग लगा गयी गोरी।
हृदय के भाव अधरों पर कभी जब गीत बन जायें।
मचलती भावनाएं जब कभी अधरों पे ठन जायें।
फागुन रंग है ऐसा अछूता कोई हो नहीं सकता,
छुये जब रंग तन-मन को हृदय बरसने बन जायें।
नेह स्नेह के भाव खिले जब नैन से नैन मिले फागुन में।
आवत-जावत राह तके सब चाह से चाह मिले फागुन में।
रंग-बिरंगी धरा भयी और फूल ही फूल खिले अईसन,
मस्त मलंग हुआ जीवन जब तन-मन रंग रंगा फागुन में।
न जुड़ता नाम तेरे संग तो यूँ बदनाम ना होता।
न जुड़ता साथ में तेरे कहीं यूँ नाम ना होता।
न मिलता मैं अगर तुमसे तो ऐसा हाल न होता,
न लिखता गीत कविता मैं भी किसी काम का होता।
हमारी चाहतों का रंग कभी फीका नहीं होगा।
हमारी आशिकी का ढंग कभी फीका नहीं होगा।
खुमारी ये तुम्हारी जो नहीं तो और फिर क्या है,
कि तुम्हारी खुश्बुओं का संग कभी फीका नहीं होगा
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