नाजुक एहसास।

नाजुक एहसास। 

गुमसुम कहीं वो घबराती तो होगी
मेरे गीतों को वो गुनगुनाती तो होगी
याद आती होंगी जब भी बातें पुरानी
आंखों में सही वो शर्माती तो होगी।

वो बीते पल याद आते तो होंगे
गुजरे वो कल याद आते तो होंगे
चले साथ में दो कदम जो कभी
वो रास्ते तुम्हें याद आते तो होंगे।

महफ़िल में सखियां फिर बुलाती तो होंगी
पुराने नामों से चिढ़ाती तो होंगी
तन्हाई में जब भींगती होंगी पलकें
चुपके से खुद को समझाती तो होंगी।

पुरवा के झोंके फिर सहलाते तो होंगे
मीठी छुवन की याद दिलाते तो होंगे
संभालती होगी भले अपना आँचल
ये झोंके मगर लहराते तो होंगे।

सूरज वहीं फिर ढलता तो होगा
देख उसका मन मचलता तो होगा
मेरी याद अब भी आती तो होगी
पलकों से आंसू छलकता तो होगा।

गुमसुम कहीं वो घबराती तो होगी
मेरे गीतों को वो गुनगुनाती तो होगी।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
   हैदराबाद
   09अगस्त,2020

चौपाई।

     चौपाई           

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राम सिया राम सिया राम              
        जय जय राम।  
राम सिया राम सिया राम
       जय जय राम।       
🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚
दीप जलाओ हो उजियारा
मिटा आज अंधेरा सारा।।
राम सिया राम सिया राम
       जय जय राम।।
🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚
मंगल गीत सुनाओ सारे।
आये हैं प्रभु राम दुआरे।।
राम सिया राम सिया राम
        जय जय राम।।
🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚
पांच अगस्त यह तिथि पुनीता।
हरषित जन अभिजीत हरिप्रीता।।
राम सिया राम सिया राम
       जय जय राम।।
🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚
मंदिर का है काम पुनीता
हिल मिल गाओ मंगल गीता।।
राम सिया राम सिया राम
        जय जय राम।।
🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚
इतिहास बना आज अवध में।
मिला राम को धाम अवध में।।
राम सिया राम सिया राम
         जय जय राम।।
🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚
हरषित भए सभी नर नारी।
पुण्य भई है धरती सारी।।
राम सिया राम सिया राम
        जय जय राम।।
🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚
खग मृग और पशु पक्षी प्यारे।
झूमे नाचे गायें सारे।।
राम सिया राम सिया राम
      जय जय राम।।
🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚
राम राम है नाम अपारा।
सकल जगत ने है स्वीकारा।।
राम सिया राम सिया राम
       जय जय राम।।
🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚
कहे "अजय" यह जनम सुनहरा।
आज हटा है प्रभु का पहरा।।
राम सिया राम सिया राम
      जय जय राम।।
🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚
राम कथा सुंदर सुविचारी
शोक मिटे मन होए सुखारी।।
राम सिया राम सिया राम
       जय जय राम।।
🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚

 ✍️©️अजय कुमार पाण्डेय 
         हैदराबाद 
         05अगस्त,2020

अपनी बात अलग है थोड़ी।



 अपनी बात अलग है थोड़ी। 

कितने लोगों को देखा है
औरों के जीवन अपनाते
कितने ही लोगों को देखा
इतिहास पुराना दुहराते।

पर जीवन के रण में मैंने
अपनी छाप अलग है छोड़ी
कोई चाहे कुछ भी बोले
अपनी बात अलग है थोड़ी।।

चलते हैं सब राहों में
लिए हाथ को हाथों में
मैंने जीवन जीना सीखा
आंधी में तूफानों में।

तूफानों में कश्ती डूबी
लेकिन आस कभी ना छोड़ी
कोई चाहे कुछ भी बोले
अपनी बात अलग है थोड़ी।

प्यार किया जब प्यार किया
दिल और जान सब वार दिया
रिश्तों की मर्यादा समझी
जैसा जो था स्वीकार किया।

कभी नहीं छोड़ा कुछ मैंने
बस रिश्तों की डोरी जोड़ी
चाहे कोई कुछ भी बोले
अपनी बात अलग है थोड़ी।।

जो भी हूँ मैं जैसा भी हूँ
अपनी दुनिया में जीता हूँ
जितने घाव मिले जीवन में
उन घावों को मैं सीता हूँ।

पैबंद लगे उन घावों पर
मलहम की आस न छोड़ी
कोई चाहे कुछ भी बोले
अपनी बात अलग है थोड़ी।।

 ✍️©अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        01अगस्त,2020

इक गीत सुनाने आया हूँ।




इक गीत सुनाने आया हूँ।  


लिए साज हाथों  में  फिर
इक गीत सुनाने  आया हूँ,
जीवन की सारी बातों को
मैं   समझाने   आया    हूँ।

जीवन सुख दुख का संगम 
इसके   हैं   लाखों   पहलू
इक दूजे का साथी बनकर
कुछ तुम सहना, कुछ मैं सहलूं।

बुरे काम का इस दुनिया में
मिलता नहीं कभी कोई फल
अच्छे कामों का  प्यारे
दुनिया में ना दूजा हल।

ऐसी ही कुछ गीतों को
आज सुनाने आया हूँ,
लिए साज हाथों में मैं
इक गीत सुनाने आया हूं।।

बचपन की सारी शैतानी
यौवन की सारी नादानी
जज्बातों की सारी बातें
बीत चुकी जो सारी कहानी।

उन सारी बातों को मैं
फिर याद दिलाने आया हूँ,
लिए साज हाथों में मैं
इक गीत सुनाने आया हूँ।।

जीवन के अंतिम पल में
सब खुद को तनहा पाते हैं,
कुछ दूरी तक साथ हैं चलते
फिर साथ छोड़ सब जाते हैं।

अंत सफर सबका निश्चित है
सब मिट्टी में मिल जाना है
मोह यहां फिर काहें करना
जग तो आना जाना है।

जीवन की इस सच्चाई को
मैं बतलाने आया हूँ,
लिए साज हाथों में मैं
इक गीत सुनाने आया हूँ।।

 ✍️©अजय कुमार पाण्डेय
 हैदराबाद
 30जुलाई,2020

पौरुष आसान कहाँ।


पौरुष आसान कहाँ।

सच है नारी जैसा बनना
है दुनिया में आसान नहीं,
त्याग तपस्या उनके जैसा
अपनाना आसान नहीं।

पर, पुरुषों का जीवन भी
जी पाना आसान कहां,
पुरुषों की इस दुनिया में
पौरुष इतना आसान कहां।

कितने पुरुषों को देखा है
मैंने जीवन को सुलझाते
अपना सुख दुख भूल सभी
औरों का जीवन अपनाते।

ना जाने दुनिया की कितनी
कड़वाहट को वो जीते हैं,
हंसते रहते ऊपर से पर
भीतर जख्मों को सीते हैं।

जीने को तो जीते हैं पर
जीवन इतना आसान कहां,
पुरुषों की इस दुनिया में
पौरुष इतना आसान कहां।

रोजी रोटी के चक्कर मे
कितनी ही ठोकर खाता है
गिर जाता है कभी कहीं पर
कहीं स्वाभिमान दबाता है।

मुश्किल होता जीवन जब
पैसों से तोला जाता है
उसके कर्तव्यों को सारे
टुकड़ों में मोला जाता है।

टुकड़ों का जीवन जीना
कब इतना आसान रहा
पुरुषों की इस दुनिया में
पौरुष इतना आसान कहां।

प्रेम भले करते हों कितना
व्यक्त कहां कर पाते हैं
जब कहने की बात चली
कायर ही कहलाते हैं।

जाने कितने सपनों का
बोझ उठाकर जीते हैं
निज सपने त्याग दिए हैं
औरों के सपने जीते हैं।

औरों के सपनों को जीना
होता इतना आसान कहां,
पुरुषों की इस दुनिया में
पौरुष इतना आसान कहां।

फूट फूटकर रोना चाहे
मुश्किल से रो पाते हैं
अपने मन की बातों को
मुश्किल से कह पाते हैं।

कहने को वाचाल बहुत हैं
कुछ कह पाना मुश्किल है
दिल में कितने भाव छुपाते
सब कह पाना मुश्किल है।

स्त्री जीवन कठिन है माना
पुरुष बनना आसान कहां
दुनिया चाहे कुछ भी बोले
पौरुष इतना आसान कहां।।

 ✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        29जुलाई,2020
आज हुई है दूर उदासी
हर्षित हैं सब भारतवासी।।

आपद काल विपद है भारी
सुन लीजो प्रभु अरज हमारी।

पलकों के किनारे इक आंसू।

पलकों के किनारे इक आंसू।  

पलको के किनारे पे ठहरा
इक आंसू कितने वर्षों से,
जाने कितना कुछ है झेला
इक आंसू कितने वर्षों से।

चाहा कितनी ही बार यहां
पलकों से होकर गिर जाऊं,
मिल जाऊं मिट्टी में जाकर
अपना जीवन भी तर जाऊं।

आंखों से तेरे गिरा कभी तो
सोचो किधर मैं जा पाऊंगा
मिटा जो मिट्टी में गिरकर
ना पास तुम्हारे आ पाऊंगा।

इक तुमसे अपना नाता है
इन आंखों में मैं बसता हूँ
दुख में तेरे साथ  दुखी मैं
खुशियों में तेरे हँसता हूँ।

आंखों से पलकों तक मैं
जाने कितनी ही बार बना
छोड़ चले सब साथ भले ही
पर साथ हमारा रहा बना।

कितने पल जीवन में आये
कभी हँसाये कभी रुलाये
उन पल की सारी यादों को
मन में हरदम रहे दबाए।

घर के अंधियारे कोने में
जब भी तुमको पाया है
तेरे नैन भिंगोने से पहले
मेरा दिल भी रोया है।

जब रिश्तों की कड़वाहट ने
तुम्हें अकेला छोड़ दिया
यूँ लगा मुझे भी तब उस पल
तुमको मिल सबने तोड़ दिया।

तेरी आँखों की सुर्खी को
मैंने नम कर डाला था
तब संभाला तुमने मुझको
मैंने भी तुम्हें सँभाला था।

छोड़ चले जब सारे अपने
लगे टूटने सारे सपने
जब मिथ्या परिहास हुआ
जब सब कुछ लगा बिखरने।

उस पल तेरा साथी बनकर
दुःख में भी मुस्काया था
दर्द तुम्हारा सब पीकर के
आंखों में भाव छुपाया था।

दो पल का ये जीवन अपना
मैं नाम तुम्हारे करता हूँ
पलकों का मैं आंसू ठहरा
पलकों में तेरे रहता हूँ। 

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       26जुलाई,2020


हुआ तेरा मैं धीरे से।

     
 हुआ तेरा मैं धीरे से। 


हवाओं ने घटाओं से, कहा कुछ आज धीरे से
बड़ी मद्धम सुहानी है, तेरी हर बात धीरे से।

चाहत का तेरे हरसू, असर है आज साँसों में
हुआ मैं भी दिवाना सुन, तेरा फिर आज धीरे से।

तेरी चाहत का ये बादल, जगाता प्यास धीरे से
हवा पागल सी देखो फिर हुई है,  आज धीरे से।

हुई जो कुछ खता मुझसे, तो तुम बस  मुस्कुरा देना 
भुला दुनिया मैं कहता हूँ,  तेरा  हूँ आज धीरे से।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        25जुलाई,2020

वर्णमाला कविता।

हिंदी वर्णमाला कविता

*अ* से अनार, *आ* से आम
मेहनत से बनते सब काम।
*इ* से इमली, *ई* से ईख,
अच्छी सारी बातें सीख।
*उ* उल्लू, ** से ऊन
सबकी सारी बातें सुन।
** से ऋषि, हैं सभी महान
देते सबको अच्छा ज्ञान।
** से एक, ** से ऐनक,
बच्चे बिना ना भाए रौनक।
** से ओखली, ** से औरत,
सूरत से प्यारी है सीरत।
*अं* अंगूर, *:*  से कुछ नही
जीवन में डरना कभी नहीं।।

** से कबूतर, ** से खरगोश,
सोच समझ कर दिखाना जोश।
** से गमला, ** से घड़ी
सेना सीमा पर तैनात खड़ी।
** पर है पूर्ण विराम,
देता सभी को है आराम।।

** से चरखा, ** से छाता,
शिक्षा से संस्कार है आता।
** से जहाज, ** से झरना,
बुरा काम ना कोई करना।
** पर है पूर्ण विराम
देता है सभी को आराम।।

** से टमाटर, ** से ठठेरा,
सूरज निकला हुआ सवेरा।
** से डमरू, ** से ढक्कन
चुनमुन, गोपू को भाए मक्खन।
** पर भी है पूर्ण विराम
देता है सभी को आराम।।

** से तकली, ** से थन,
दूध से स्वस्थ हो तन औ मन।
** से दवात, ** से धनुष,
कर्म बनाये महान मनुष्य।
** से होता है नल
समय पर तू विद्यालय चल।।

** से पपीता, ** फल
फल खाने से मिलता बल।
** से बरगद, ** से भवन,
माँ की प्यारी लगे छुअन।
** से होती माँ की ममता
नहीं जगत में जिसकी समता।।

** से यज्ञ, ** से रथ,
चलो बनाएं सुंदर पथ 
** से लकड़ी, ** से वन,
सुंदर हो सबका जीवन।
** से शहद, ** षटकोण,
मतलब हेतु नाता ना तोड़।
** से सरौता, ** से हल
कोशिश से होती मुश्किल हल।
*क्ष* से क्षत्रिय, *त्र* से त्रिशूल,
उपवन से नहीं तोड़ो फूल।
*ज्ञ* से होता ज्ञानी और ज्ञान,
पढ़ो लिखो और बनो महान।।

 ✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        24जुलाई,2020

बारिश की बूंदें।

बारिश की बूंदें।   

रिमझिम बारिश की बूंदों ने
राग मिलन का गाया है,
लेकर कितनी ही सौगातें
खुशियों का मौसम आया है।

दूर कहीं पपीहरा गाए
कोयल ने राग सुनाया है,
मन में भरने भाव सुहाने
खुशियों का मौसम आया है।

कोंपल फूटें, फसलें झूमें
धरती ने श्रृंगार रचाया है,
तन मन में प्रेम जगाने
खुशियों का मौसम आया है।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       23जुलाई,2020

बाँसुरीवाला।

बाँसुरीवाला।  

लिए बांसुरी फिर आया हूँ
कितने ही सपने लाया हूँ
लाल, गुलाबी, नीले, पीले
रंगों की माला लाया हूँ।

आओ हिलमिल सारे आओ
नन्हे-मुन्ने प्यारे आओ
चुनमुन, गोपू, छुटकी, बड़की
सारे राजदुलारे आओ।

जितने रंग भरे जीवन में
सब रंग मैं संग लाया हूँ
बच्चे बूढ़े या हो कोई
सबका मैं बचपन लाया हूँ।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       23जुलाई,2020

क्यूँ याद दिलाते हो।

क्यूँ याद दिलाते हो। 

जो बीत चुकी उन यादों में
जीवन क्यूँ उलझाते हो,
जिन बातों से दर्द मिला है
क्यूँ उनकी याद दिलाते हो।

पल कितने आये चले गए
कुछ स्वप्न दिखाकर छले गए,
उन सपनों की नैया की
क्यूँ पतवार चलाते हो।

जीवन में बहुतेरे आये
कुछ अपने कुछ बने पराए,
जाने वाले चले गए जब
व्यर्थ में अश्रु बहाते हो।

याद करो अब बात सुहानी
नई घटी या याद पुरानी,
कष्ट मिले हैं जिन बातों से
क्यूँ उनसे दिल दहलाते हो।

जीवन गीतों की माला है
सुंदर मोरों की आला है,
मुरझाई यादों से इसकी
मोती क्यूँ बिखराते हो।।

जिन बातों से दर्द मिला है,
क्यूँ उनकी याद दिलाते हो।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       22जुलाई,2020

सीपियाँ।

            सीपियाँ


वक्त की रेत पर कुछ सीपियाँ बिखर गईं,
कुछ तो यूँ पड़ी रहीं और कुछ निखर गईं।

कर्म का असर है ये या कोई प्रभाव है,
कुछ रहीं शांत शांत और कुछ मुखर हुईं।

रूप के शहर में अनगिनत  चाहतें,
कुछ तो गुजर गईं और कुछ ठहर गईं।

क्षणभर का खेल ये या चाहतों का मेल है,
खैर जो भी बात हो रश्मियां प्रखर हुईं।

उम्र के पड़ाव पर पीछे देखा जब कभी,
रेत की वो सीपियाँ हँस कर गुजर गईं।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद

दोहे

खेती बाड़ी के बिना, चले कभी ना काम।
सारा जग खुशहाल जब, खेती करे किसान।।

खेतों में जब हल चले, सीना धरती चीर।
नई कोंपलें फूटती , हरती जग की पीर।।

आंधी हो तूफान हो, या होए बरसात।
जीवन कटता खेत में, दिन हो या हो रात।।

नैनों में सपने लिए, तके सरे आकाश।
हरपल खटता खेत में, लेता ना अवकाश।।


मेहनत अपनाना है।

मेहनत को अपनाना है।  


जीवन में जब जब हमको
नया सवेरा लाना है
त्याग कर अवसाद सारे
मेहनत हमें अपनाना है।

चल रहे कर्तव्य मार्ग पर
रुकना तेरा काम नहीं
प्रण जब ठाना है जीवन में
झुकना तेरा काम नहीं।

पथ की सब बाधाओं को
तुझको सरताज बनाना है।
त्याग कर अवसाद सारे
मेहनत हमें अपनाना है।।

✍️©️ अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद


क्रमांक                     कविता                               पृष्ठ संख्या 
76.                  कैसे दर्द लिखूँ                                79
77.                 नीड़ कहां नींव किधर                       80
78.                  मिल गयी                                      81
79.                 कुछ गुनगुनाऊँ                               82
80.                 मलहम के अवशेष                          83
81.                 अंतर्मन                                         84
82.                 कुछ तुम चलो, कुछ हम चलें          85
83.                 दर्द से परे पुनर्वास                         86
84.                 भारत की भूमि                              87
85.                 भारत के भाग्य विधाता                 88
86.                 योग                                             89
87.                 जैसा कर्म वैसा फल                       91
88.                 बुद्धपुर्णिमा                                    92
89.                 शापित होने से सँभलो                    93
90.                मानवता का एहसास दो                  94
91.                 धरती का कर्ज                               95
92.                 गृह निर्माण करें                            96
93.                हौसला रख तू ज़िंदगी                     97
94.                 एक कहानी लिखूं                          98
95.                 याद पिया की आई                        99
96.                 सावन खुशियों का मौसम            100
97.                 तुमने मधुमास लिखा                  101
98.                 प्रेम के तुम देवता हो                   102
99.                 हंसों का जोड़ा                             103
100.               साथ नहीं छोड़ेंगे                         104
101.               बन जाओ मेघ बरस जाओ          105
102.               कुछ बता                                   106
***





क्रमांक                         कविता                              पृष्ठ संख्या 
51.                 अगर साथ तुम न होते                          54
52.                 छवि उतनी होगी प्यारी                         55
53.                सब स्वप्न हो जाएंगे                             56
54.                 खत्म मेरे वनवास करो                         57
55.                तुमको ही स्वीकार किया                       58
56.                 बात अभी भी बाकी है                         59
57.                  उम्र तमाम कर लूंगा                         60
58.                 कुदरत का करिश्मा                            61
59.                 इक नया आगाज़ लिखते हैं                 62
60.                भूल नहीं सकता                                 63
61.                ढूंढता सत्य हर बार हूँ                         64
62.                तकदीर की लिखावट                          65
63.               निशा निमन्त्रण-चांद छूने की चाहत    66
64.                तुमको कोई कमी मिलेगी                   67
65.                तुमको लेकिन खबर नहीं थी               68
66.                 मुखर सत्य                                      69
67.                 गुलमोहर                                         70
68.                 मन ठहरा, मन बहता                        71
69.                 सच है ये मैंने माना                         72
70.                 पास उतना ही पाओगे                     73
71.                 मैं तुमको सुनूं                                 74
72.                 श्याम दीवानी                                 75
73.                 रिसते घाव                                     76
74.                 रात जागूँ सदा                                77
75.                 तड़प जाती नहीं                             78

क्रमांक                 कविता                                 पृष्ठ संख्या 
26.                 बचपन                                         28
27.                कायरता स्वीकार नहीं                    29
28.                सँभरण करो                                 31
29.                सुगम पथ                                     32
30.                 मधुर सांध्य                                 33
31.                 पदचिन्ह                                     34
32.                बटोही                                          35
33.                उम्मीदों का परिप्रेक्ष्य                    36
34.                संघर्षों की राह                               37
35.                जब तू लोरी गाती थी                     38
36.                 निर्झर                                         39
37.                 भोर का स्वागत करो                     40
38.                 प्रातः वंदन                                   41
39.                 बनो स्थिर अचर, न बनो अधीर     42
40.                 तेरा ही आँचल पाऊं                       43
41.                 नया उजाला लाना है                     44
42.                 चले चलो                                     45
43.                संपन्न करो                                 46
44.                जीवन को गुलजार बनाएं             47
45.                ये अभी शुरूआत है                       48
46.               हँस कर चलना होगा                      49
47.              जीवन बड़ा निराला है                     50
48.              गीत बनाकर गाता चल                 51
49.             मन पर किसका वश चलता है         52
50.             सात फेरे                                       53






क्रमांक                 कविता                                 पृष्ठ संख्या 
1                 माँ सरस्वती वंदना                             
                                        2.               परिचय                                              2                                          
 3.               तिरंगा                                               3 
4.               एलबम ज़िंदगी                                  
5.               मेंढक राजा बाजार चले                      
6 .              चुनमुन चिड़िआ घर में                     
7.               गाँव में हाथी आया                            
          8.               संभलना जरूरी है                             8             
9.               देखा है                                            9
10.            इतने ऊंचे आज उड़ो तुम                  10
11.             मैं दिखलाती हूँ                                11
12.            नन्हें पाँव                                         12
13.             फिर नई शुरुआत कर देंगे                 13
14.            इंद्रधनुष सा बचपन                         15
15.            प्रकृति की सौगातें                             16
16.            मन्ज़िलों से प्यार मुझको                  17
17.             आजकल मैं सोचता हूँ                     18
18.            अभिमन्यु फिर नहीं फंसेगा              19
19.            संघर्ष                                              21
20.            मैं माँ की परछाईं हूँ                         22
21.            प्यास                                             23
22.            मुस्कान                                         24
23.            कोंपल                                           25
24.            उम्मीद की सीपियाँ                        26
25.            चलते रहना है                                27

बन जाओ मेघ बरस जाओ।



बन जाओ मेघ बरस जाओ।


बन जाओ मेघ बरस जाओ
रिम झिम सा गीत सुना जाओ
प्यासी तपती इस धरती को
जीवन संगीत सुना जाओ।

आ जाओ फिर से आ जाओ
बूंदों से नहला जाओ।
बन जाओ मेघ बरस जाओ
रिम झिम सा गीत सुना जाओ।।

देखूं जब जब मेघ घनेरे
मन मेरा अकुलाता है
बरसे जब जब बिजुरी चमके
मन में अगन लगाता है।

तपती तरसी इस धरती को
बारिश से महका जाओ।
बन जाओ मेघ बरस जाओ
रिम झिम सा गीत सुना जाओ।।

ऐसे बरसो, झूम के बरसो
फिर से ना जियरा तरसे
पुलकित हो कण कण माटी का
झूमे नाचे गाये हरषे।

इतना बरसो आज गगन बन
सावन को महका जाओ।
बन जाओ मेघ बरस जाओ
रिम झिम सा गीत सुना जाओ।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        20जुलाई,2020

कुछ बता।

कुछ बता


ऐ शहर तू बता
क्यूँ तू उदास है?
सब कुछ तो है
मगर क्यूँ आस है?
ऐ शहर तू बता
क्यूँ तू उदास है?

कब हुई है सुबह
कुछ नहीं है पता
कब हुई शाम है
कुछ नहीं है पता।
सन्नाटों की चीरती
कैसी आवाज़ है।
ऐ शहर तू बता
क्यूँ तू उदास है?

पास हरदम तेरे
लोग आते रहे
हसरतें कितनी ही
लोग लाते रहे।
उन हसरतों की 
तुझको भी आस है।
ऐ शहर फिर बता
क्यूँ तू उदास है?

हसरतें पूरी हों
ये जरूरी नहीं
मंजिलें सारी पाएं
जरूरी नहीं।
हौसलों पे मगर
कैसा अभिशाप है।
ऐ शहर फिर बता
क्यूँ तू उदास है?

चल पड़े हैं यहां
राह में हम सभी
ले के उम्मीदें यहां 
साथ में हम सभी।
मंज़िलें फिर मिलेंगी
ये विश्वास है।
ऐ शहर फिर बता
क्यूँ तू उदास है?


✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       20जुलाई,2020

उम्मीद की सीपियाँ।



उम्मीद की सीपियाँ

चल पड़े हैं मेरे दो कदम
जीवन की सुनी राह में
लिए जलाए दीप आस का
दृढ़ता भर विश्वास में।

राह कठिन या मुश्किल आये
रुकने का कोई मोल नहीं
लाख प्रलोभन पथ में आये
मेहनत का कोई तोल नहीं।

हिम का उच्च शिखर आंखों में
और भुजाओं में अरुणाई
लिये सीपियाँ उम्मीदों की
पग में सागर की गहराई।

नहीं झुका है नहीं झुकेगा
मस्तक निज हित के आगे
अपनी ही रफ्तार चलेगा
दुनिया चाहे जितना भागे।

जो गिरा कभी इस पथ में
तो हार नहीं मानूंगा मैं
चाहे जितनी बाधा आये
रार नहीं ठानूँगा में।

जो भटका इस राह में कभी
तो खुद को समझाऊंगा
लाख अंधेरा घना भले हो
आशा के दीप जलाऊंगा।

जीवन चलने का नाम यहां
मैं अविरत चलता जाऊंगा
चल पड़े हैं मेरे दो कदम
अब पथ में ना सुस्ताऊंगा।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        18जुलाई,2020

प्रकृति की सौगातें।

बाल कविता 
    
  प्रकृति की सौगातें

धन्य-धन्य है धरती माता
जिसने जीवन पाला है
कितनी ही आघातें झेली
दिया अमृत का प्याला है।

सूरज से प्रकाश मिला है
चंदा औ आकाश मिला है
तारों की रिमझिम रातें
शीतल सा अहसास मिला है।

वृक्ष मिले हैं, फूल मिले हैं
जीवन के सब मूल मिले हैं
आस मिली है, सांस मिली है
सबके थोड़े मूल मिले हैं।

कितनी सुंदर बरसातें हैं
ये प्रकृति की सौगातें हैं
संरक्षण इनका बहुत जरूरी
संकल्प हम दोहराते हैं।।

 ✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
         हैदराबाद
        17जुलाई,2020

श्याम दीवानी।

श्याम दीवानी।  


जब जब देखूं श्याम तुझे मैं
मेरा मन यूँ रम जाता है,
सुध बुध अपनी खो जाती हूँ
याद नहीं कुछ रह जाता है।

बस तेरे ही भावों में रहती
कुछ ना सुनती, कुछ ना कहती
तुझ में ऐसी डूबी हूँ मैं
बस तेरी ही बातें करती।

तेरा संग मुझको प्यारा है
अपना सबकुछ तुझ पे वारा है
तुझ पर सारा जीवन अर्पित
तू ही बस एक सहारा है।

तुमसे ही है सारा उपवन
खिला खिला ये सारा मधुबन
धरती की सारी हरियाली
महका दो मेरा भी जीवन।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       17जुलाई,2020




जीवन बड़ा निराला है।

जीवन बड़ा निराला है।

ये जीवन बड़ा निराला है
जहर, कभी अमृत प्याला है
कितने ही सुर बने बिगड़ते
पर गीतों की माला है।

घर में देखा, बाहर देखा
गांव-गांव, शहरों में देखा
हर कोई मतवाला है
ये जीवन बड़ा निराला है।

धूप-छांव की बातें देखी
इक दूजे पर घातें देखी
देखा हार, जीत भी देखा
खुशियों की बरसातें देखी।

सुख-दुख संग संग में देखा
ढलते रंग रंग में देखा
सतरंगों की आला है
ये जीवन बड़ा निराला है।

राजा तो कोई रंक यहां
सब अपने, पर संग कहां
सबकी अपनी अपनी राहें
जीने का अपना ढंग यहां।

निकले कई, कई हैं बाकी
हर कोई खुद अपना साकी
लिए हाथ में प्याला है
ये जीवन बड़ा निराला है।।

 ✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
      हैदराबाद
      16जुलाई,2020

सावन खुशियों का मौसम।

सावन-खुशियों का मौसम।

सावन की बूंदों ने देखो
कैसा खेल रचाया है
तन-मन सब बहका-बहका है
जीवन भी महकाया है।

टिप-टिप बारिश की बूंदें भी
गीत मिलन का गाती है
मौसम ने करवट बदली है
सरगम राग सुनाती है।

इन्द्रधनुष के सतरंगों ने
नभ का रूप सजाया है
कलियों ने घूंघट खोला है
भँवरों ने राग सुनाया है।

गोरी के पायल की रुनझुन
इक संदेशा लायी है,
सागर से मिलने को नदिया
बरबस ही अकुलाई है।

पुरवाई के झोंकों ने भी
राग प्रेम का गाया है,
धरती ने हरियाली ओढ़ी
खुशियों का मौसम आया है।

 ✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       12जुलाई,2020

2-कजरी

परदेस बसे अपने प्रिय के विरह में डूबी नव विवाहिता दुल्हन के विचार, जब सावन में कजरी उत्सव मनाया जाता है, को मैंने कजरी लोकगीत के रूप में व्यक्त करने का प्रयास किया है--

           -कजरी          

अरे रामा टिप टिप बरसे सवनवा
के लागे नाही मनवा रे हारी।
रहि रहि अंखिया से बरसे सवनवा
के लागे नाही मनवा रे हारी।।

पिया गए हैं कमाए
उनके कइसे हम बुलाये
नाही चिट्ठी हौ न कौनो खबरिया
के लागे नाही मनवा रे हारी।।

पुरवाईया तड़पाये
तन मन में अगन लगाये
पिया बिना मुश्किल हौ सवनवा
के लागे नाही मनवा रे हारी।।

बिन पियतम आंगन सूना लागे
रात रात भर अंखिया जागे
सुनि सुनि के लोगन के सब बतिया
के लागे नाही मनवा रे हारी।।

सावन बरसे, जियरा तरसे 
याद में तेरे नयना बरसे
बिन तोहरे नाही भाये ई सुरतिया
के लागे नाही मनवा रे हारी।।

यहि जीवन के कवन भरोसा
कब का होइ किसने देखा
बिन तोहरे कछु ना भाये, सजनवा
के लागे नाही मनवा रे हारी।।

अब न हमके तू तड़पावा
जल्दी से संदेश भिजावा
महका देता हमरो तू सवनवा
के लागे नाही मनवा रे हारी।।

 ✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       13जुलाई,2020
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1-कजरी।



दो सखियों के मध्य संवाद पूर्वांचली (बनारसी व मिर्जापुरी) लोकगीत--      

         1-कजरी     
        
अरे रामा टिप टिप बरसे है पनिया
बदरिया घिर आयी रे हारी।
अरे रामा पनिया में भींगे बदनवा,
कजरिया कइसे खेलबू रे हारी।।

हम चाहे जइसे जाइब
नाही बरखा से डेराइब
बरखा केतना रोकी हो डगरिया
कजरिया खेले जाइब रे हारी।।

जो पनिया में तू जइबू
कइसे भींगे से बचइबू
कइसे रखिबू आपन तू खबरिया
बदरिया घिर आई रे हारी।।

आपन खयाल हम तो रखिबे
सखियाँ साथ हम तो रहिबे
तू मनवा से निकाला कसकिया
कजरिया खेले जाइब रे हारी।।

जो तू जइबू कजरी खेले
साथे हमका भी तू लइ ले
अकेले जाए नाही देबे डगरिया
बदरिया घिर आई रे हारी।।

संघे कजरी हम तू खेलब
मिल के झूला हम तू झूलब
चाहे बरसे केतनो इ बदरिया
कजरिया  हमहू खेलब रे हारी।।

 ✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
         हैदराबाद
         13जुलाई,2020
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अगर साथ तुम ना होते।

अगर साथ तुम ना होते।    

जीवन में उल्लास न होता
अगर साथ तुम ना होते।

मन में घोर निराशा होती
खुशियों की ना आशा होती
जीवन सूना सूना होता
कहता कभी, कभी चुप रहता।

एकाकीपन घेरे रहता
इधर-उधर बंजारा फिरता
कौन दिलासा देता इसको
अगर साथ तुम ना होते।

उजड़ा सारा उपवन लगता
सूना घर का आंगन लगता
जीवन में उल्लास न होता
मधुरम एहसास ना होता।

गीतों में सरगम न होता
सूना सूना मधुबन होता
मरुधर सा ये जीवन होता
अगर साथ तुम ना होते।

दिवस न होता, रात न होती
अपनेपन की बात न होती
सपनों का अहसास न होता
जीवन में मधुमास न होता।

मन में कोई आस न होती
रातें सारी उदास होतीं
नीरस सारा जीवन होता
अगर साथ तुम ना होते।।

✍️©अजय कुमार पाण्डेय
      हैदराबाद
     12जुलाई,2020

याद पिया की आयी।

याद पिया की आयी।  

सावन में जब बदरी छाई
याद पिया की पुन पुन आई।
नैनों से तब आंसू बरसे
पिया मिलन को जियरा तरसे।।

पावस ऋतु है बड़ी सुहानी
बनती है नित नई कहानी।
पपिहा पावस गीत सुनाए
अंदर से जियरा अकुलाए।।

बारिश की बूंदें न भाती
बिरहन का राग सुनाती है।
बादल की गर्जन डरवाती
बिजुरी भी हूक उठाती है।।

पिय परदेसी दूर बसे हैं
चंदा बनकर शूल डँसे हैं।
मन का भाव जताऊं कैसे
और इसे समझाऊं कैसे।।

अबके बिछड़े कब आएंगे
प्रेम पुष्प कब खिल पाएंगे।
अब ना तड़पाओ आ जाओ
सावन की ऋतु महका जाओ।।

 ✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
         हैदराबाद
         12जुलाई,2020

गीत बनाकर गाता चल।

गीत बनाकर गाता चल। 

जीवन सुख दुःख का संगम
इनमें मेल बिठाता चल,
हार मिले या जीत मिले
गीत बनाकर गाता चल।

कितने आये चले गए
बचे, मगर कुछ छले गए,
बचा उसे अपनाता चल
गीत बनाकर गाता चल।

दुनिया है  आनी जानी
हर किसी की कोई कहानी,
अपनी नई बनाता चल
गीत बनाकर गाता चल।

छोड़ कर मंझधार चले जो
वापस तेरे क्या आएंगे,
टूटी फूटी पगडंडी है
जाने कौन डगर जाएंगे।

जीवन का न कोई भरोसा
कल क्या होगा किसने देखा
तू नवगीत बनाता चल
गीत खुशी के गाता चल।।

 ✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       11जुलाई,2020

संभलना जरूरी है।

संभलना जरूरी है।


विकल पड़े हैं जन जन सारे, निकल रहा सब गुस्सा।
विकल हो रही मन की गांठें, निकल रहा बन किस्सा।।

जनता सब हलकान पड़ी है, सूझे राह न कोई।
टूट रही है सब्र की माला, जोड़े कैसे कोई।।

घर घर में चिंता पसरी है,लाएं कैसे रोटी।
ऐसा ही जो हाल रहा तो, मुश्किल जीवन ज्योती।।

अब भी नहीं अगर संभले तो, मुश्किल होगा जीवन।
मुरझाएगा जीवन सारा, मुरझायेगा उपवन।।

 ✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
         हैदराबाद
         11जुलाई,2020

छवि उतनी होगी प्यारी।



छवि उतनी होगी प्यारी।  

बात चली जब जीवन-रण की,
कौन यहां कब हारा है।
केवल अपनी बात कही है,
दूजा कब स्वीकारा है।।

हार जीत के पैमानों से,
खुशियां तोली जाएंगी।
जीवन उतना दूभर होगा,
चैन नहीं फिर पाएंगी।।

ज्ञानी जन सब कहते सारे,
जीवन फूलों की क्यारी।
प्रेम भाव से जितना सींचो,
छवि होगी उतनी प्यारी।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
      10जुलाई,2020

यूँ तो है बड़ी तेज व्यवस्था।

यूँ तो है बड़ी तेज व्यवस्था।

यूँ तो है बड़ी तेज व्यवस्था
लेकिन केवल कुछ मौकों पर।
बदली है बड़ी तेज अवस्था
लेकिन केवल कुछ मौकों पर।

आते जाते कितने मिलते
लेकिन केवल कुछ मौकों पर।
संग-संग कुछ पल हैं चलते
लेकिन केवल कुछ मौकों पर।

उनको भी तो आते देखा
लेकिन केवल कुछ मौकों पर।
वादा कभी निभाते देखा
लेकिन केवल कुछ मौकों पर।

राजनीति में खारिश देखा
लेकिन केवल कुछ मौकों पर।
बिन बादल बारिश भी देखा
लेकिन केवल कुछ मौकों पर।

न्याय सहज से मिलते देखा 
लेकिन केवल कुछ मौकों पर।
अपराधी को हँसते देखा
लेकिन केवल कुछ मौकों पर।

सत्ता ने इतिहास भी बदला
लेकिन केवल कुछ मौकों पर।
हास औ परिहास भी बदला
लेकिन केवल कुछ मौकों पर।

कहने को कभी देश बदला
लेकिन केवल कुछ मौकों पर।
और शायद वेश भी बदला
लेकिन केवल कुछ मौकों पर।

कितने ही दीवाने देखे
लेकिन केवल कुछ मौकों पर।
कितने ही अफसाने देखे
लेकिन केवल कुछ मौकों पर।

अब तो सबको उठना होगा
छोड़ के सारे अवसादों को
मिलजुल करके चलना होगा
छोड़ के केवल अपवादों को।

मौके आज बदलने होंगे
सबके भाव सुधरने होंगे
मन से भी अपनाना होगा
हम सबको सारे मौकों पर।।

 
 ✍️©️अजय कुमार पाण्डेय 
        हैदराबाद 
        10जुलाई,2020

खत्म मेरे वनवास करो।



खत्म मेरे वनवास करो। 

मन में जब से आन बसे हो
कुछ भाव नए बन आये हैं।
शब्दों में थिरकन जागी है 
नवगीत नए बन आये हैं।

हर क्षण अब मेरे नयनों में
सुंदर सा मुखड़ा रहता है।
पलकें खुलें, बंद हो चाहे
चांद का टुकड़ा रहता है।

इन नयनों में आन बसे तुम
नींद कहां अब आती है।
आती जाती सांसे भी अब
तेरे ही गीत सुनाती हैं।

मेरे गीतों, कविताओं में
बन प्रेम निखरकर आती हो
मैं प्रतिपल लिखता हूँ जिसको
तुम उसको प्रतिपल गाती हो।

तुम बिन अपना जीवन सूना
सब तुम पर अर्पित करता हूँ।
तन-मन-धन औ जीवन 
सारा
सब आज समर्पित करता हूँ।

आ करके जीवन में मेरे
रंग भरो, उल्लास भरो।
बहुत सह चुका एकाकीपन
खत्म मेरे वनवास करो।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय 
      हैदराबाद
      09जुलाई,2020

तुमको ही स्वीकार किया।




तुमको ही स्वीकार किया। 

मन के सूने अंबर पर
दस्तक कितनी ही बार दिया
हर बार तुम्हें सम्मुख पाया
तुमको ही स्वीकार किया।

यादों में हर वादों में
जीवन की बारातों में
तुम कुछ ऐसे आन बसे
बस तेरा ही दीदार किया।

मन की चार दीवारी में
मूरत तेरी बैठाये हूँ
दिन रात पूजता हूँ तुमको
तुमसे ही लगन लगाए हूँ।

जब-जब भी पलकें मूँदी हैं
बस तेरा ही दीदार किया
हर बार तुम्हें सम्मुख पाया
तुमको ही स्वीकार किया।

इन नैनो में नींद नहीं
जब याद तुम्हारी आती है
यादें भी पागल ठहरीं
बस द्वार तुम्हारे जाती हैं।

नींद चैन औ अपनापन
सब तुम पर आज लुटाता हूँ
और नहीं कुछ मेरा है अब
सब तुम पर आज लुटाता हूँ।

तुम पर सब कुछ अर्पित कर के
सब कुछ है मैंने प्राप्त किया
हर बार तुम्हें ही सम्मुख पाया
तुमको ही स्वीकार किया।।

✍️©अजय कुमार पाण्डेय
     हैदराबाद
     08जुलाई,2020

सात फेरे।


    सात फेरे       

जितने ही अरमानों के
मैं पुष्प खिलाये बैठी हूँ
उन सारे अरमानों को
मैं आज समर्पित करती हूँ।

मेरे सुख अब तेरे हैं
तेरे दुख अब मेरे हैं
इक दूजे के भावों का
सम्मान सुनिश्चित करती हूं।

छोड़ा आंगन बाबुल का
पग द्वार तिहारे रखती हूं
संग संग तेरे चलने का
प्रण आज सुनिश्चित करती हूँ।

मैं भी तुमसे प्रण करता हूँ
बस तुमको ही चाहूंगा
गीत बुनूँगा साथ तुम्हारे
साथ  तिहारे  गाऊंगा।

कैसा भी हो पथ जीवन का
साथ नहीं मैं छोडूंगा
धूप खिले या छांव मिले
मैं हाथ कभी ना छोडूंगा।

तुमसे ही मेरा जीवन है
तुमसे ही सारा उपवन है
मेरे साँसों की सरगम तुम
सुर-ताल कभी ना छोडूंगा।

आज बने जो इक दूजे के
ये सात जनम का बंधन है
जीवन के इस नए सफर में
इक दूजे का अभिनंदन है।।

 ✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
         हैदराबाद
         07जुलाई,2020

चुनमुन चिड़ियाघर में।

चुनमुन चिड़ियाघर में

चुनमुन आया चिड़ियाघर
करने लगा वहां खटरपटर
देख के सबकुछ लगा झूमने
इधर-उधर फिर लगा घूमने।

बंदर, भालू, हाथी घोड़े
किसको देखे किसको छोड़े
हाथ छुड़ाकर फिर वो भागा
इक इक कर सब बाड़े दौड़े।

रंग बिरंगी चिड़िया देखा
शेर, हिरण औ चीता देखा
जब देखा बंदर का बच्चा
शैतानी करने की सोचा।

केला लेकर उसे चिढ़ाता
रह रहकर उसको ललचाता
सुनकर हलचल बंदर जागा
छीन हाथ से केला भागा।

चुनमुन डर कर लगा हांफने
घबराहट में लगा कांपने
कान पकड़ फिर माफी मांगी
कभी करेगा ना बदमाशी।।

 ✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
         हैदराबाद 
         06जुलाई,2020

मेंढक राजा बाजार चले।


बाल कविता

मेंढक राजा बाजार चले

मेढ़क राजा बाजार चले
वहाँ दर्जी के द्वार चले
देख के दर्जी ने फिर पूछा
बारिश में तुम कहाँ चले।

मैं पास तुम्हारे आया हूँ
कुछ पैसे भी ले आया हूँ
रेनकोट सिलवाने है
इसीलिए मैं आया हूँ।

दर्जी ने पूछा क्या दिखलाऊँ
तुमको मैं अब क्या समझाऊं
मुझको भी सब नहीं समझना
अब बारिश में नहीं भींगना।

दर्जी ने फिर उसे बुलाया
अंदर मेज पर उसे बिठाया
उछल कूद वो लगा मचाने
थक गया जब लगा सुस्ताने।

दर्जी ने की लाख जतन
पर मेंढक का भरा न मन
कपड़ा है नहीं पास हमारे
घूमो ऐसे ही नंगे बदन।

तब से मेंढक फिरता है
बारिश में ही भींगता है
आने लगता जब उसे मजा
इधर उधर खूब उछलता है।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
          हैदराबाद
          06जुलाई,2020

गांव में हाथी आया।


आप सभी के समीक्षार्थ एक बाल कविता-

 गांव में हाथी आया

आज गांव में हाथी आया
सभी बच्चों के मन को भाया
गोलू, मोलू, छोटू, मोटू
देख के सबका मन हर्षाया।

उसे देख सब लगे नाचने
आगे पीछे लगे भागने
हाथी को भी आनंद आया
सबके संग वो लगा नाचने।

कोई लाकर केला देता
गन्ना लाकर कोई खिलाता
सूंढ में अपने पानी भरकर
हाथी भी सबको नहलाता।

कान बजाता कभी वो अपना
सूंढ़ उठा कभी गाना गाता
बड़े मौज से खेल खेलता
सबके मन को वो बहलाता।

आज गांव में हाथी आया
आज गांव में हाथी आया।।

 ✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
         हैदराबाद
         05जुलाई,2020

मन पर किसका वश चलता है।




मन पर किसका वश चलता है।

आह पुरानी याद सुहानी
सांसों में घुल कर चलता है
कोई कितना जोर लगा ले
मन पर किसका वश चलता है।

दीपक संग पतंगा जलता
लौ के आगे पीछे रहता
व्यर्थ कहां वो फिरता है
मन पर किसका वश चलता है।

अंतस में प्रणय जब पलता
लौ से नहीं पतंगा डरता
प्राण छोड़ प्रणय जब धरता
मन पर किसका वश चलता है।

प्रणय की रश्मि जब जलती
और नहीं परिणाम निरखती
दोनों तरफ प्रेम जब पलता
मन पर किसका वश चलता है।

 ✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       04जुलाई,2020

सब स्वप्न हो जाएंगे।

सब स्वप्न हो जाएंगे।    

बस कुछ दिन की बात है
फिर सब स्वप्न हो जाएंगे
कल तक था जो अपना
सब वो खत्म हो जाएंगे।

देश धर्म के नारे सारे
सब उनके हो जाएंगे
अपनी अपनी सुविधा खातिर
मनचाही चाल चलाएंगे।

जनता है कठपुतली आखिर
डोर पकड़ हाथ नचाएंगे
बस कुछ दिन की बात है
फिर सब स्वप्न हो जाएंगे।

रेल-तेल का खेल अजब है
संकट के संग मेल अजब है
जनता होगी भ्रमित यहां
कैसा ठेलम तेल अजब है।

हरपल होंगी अपनी बातें
औरों की क्या सुन पाएंगे
बस कुछ दिन की बात है
फिर सब स्वप्न हो जाएंगे।

लोकतंत्र की बातें होंगी
हाथों में खैरातें होंगी
कोई चलेगा तलवारों पर
कुछ के लिए सौगातें होंगी।

राजनीति के चक्रव्यूह में
सब विस्मित रह जाएंगे
बस कुछ दिन की बात है
फिर सब स्वप्न हो जाएंगे।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        03जुलाई,2020

कुछ बात अभी भी बाकी है।

      बात अभी भी बाकी है। 

आ जाओ के इस दिल में
अरमान अभी भी बाकी है
साँसों की सरगम थोड़ी है
जान अभी भी बाकी है।

तेरे साथ गुजारे जो पल
वो याद अभी भी बाकी है
तेरी चाहत में जो मांगी
फरियाद अभी भी बाकी है।

मिलकर के जो साथ बनाये
तस्वीर अभी भी बाकी है
आंखों के अनकहे ख्वाब की
ताबीर अभी भी बाकी है।

कहना था जो कह ना पाए
बात अभी भी बाकी है
तेरे साथ अधूरी कितनी
रात अभी भी बाकी है।

आ जाओ के इस दिल में
अरमान अभी भी बाकी है
साँसों की सरगम थोड़ी है
जान अभी भी बाकी है।।

 ✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
         हैदराबाद
         02जुलाई,2020

भारत के भाग्य विधाता।

भारत के भाग्य विधाता

तुम भारत के भाग्य विधाता
तुम्हें   सदा   रहे   ये   भान
आओ मिलकर एक बनें सब
छोड़ के सारे खींचातान।

कोई बाधा व्यवधान नहीं
एक बने जो रहते हैं
लक्ष्य साधना संभव होता
नेक बने जो रहते हैं।

एक दूजे का सम्मान करें
भूल के बीते सब अपमान
आओ मिल सब एक बनें
छोड़ के सारे खींचातान।

कुल पर जब संकट आता है
यौवन ललकारा जाता है
हर संकट से मुक्ति हेतु
साहस स्वीकारा जाता है।

इक दूजे का साथ धरो 
छोड़ के सारे अभिमान
आओ मिल सब एक बनें
छोड़ के सारे खींचातान।

देश, धर्म, संस्कृति पर कितने
काले बादल छाए हैं
भ्रष्ट आचरण सर पर बैठा
अनय से सब बौराए हैं।

आज धर्म की विजय करो
और करो सत्य बलवान
आओ मिल सब एक बनें
छोड़ के सारे खींचातान।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
         हैदराबाद
         02जुलाई,2020

तुमने मधुमास लिखा।



तुमने मधुमास लिखा

मेरे जीवन की बगिया में
तुमने अपना अधिवास लिखा
त्याग दिए सब ठौर ठिकाने
इस जीवन का मधुमास लिखा।

इक पग में वनवास लिखा
दूजे पग में रनिवास लिखा
कैसा भी पल हो जीवन का
तुमने बस मधुमास लिखा।

उमस भरी पावस की रातें
गर्मी, सर्दी या हो बरसातें
पतझड़ के मौसम में भी
तुमने केवल मधुमास लिखा।

रस-पूर्ण हृदय उद्यानों से
कलियों सा कोमल फूल लिखा
मरुधर सी तपती भूमि में
तुमने जीवन का मूल लिखा।

निर्मल कोमल अहसास लिखा
मुझमें अपना आकाश लिखा
अपने अंतस के गीतों से
इस जीवन में मधुमास लिखा।

 ✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
            हैदराबाद 
            01जुलाई,2020

उम्र तमाम कर लूंगा।

    
 उम्र तमाम कर लूंगा। 

तन्हाइयों के साये में 
मैं तुमको याद कर लूंगा
जो नही मिली तू मुझे तो
मैं उम्र तमाम कर लूंगा।।
                                 
संग संग तुम्हारे जो 
गुजरे हैं उम्र का आलम     
उन्हीं पलों से मैं अपनी
सुबह औ शाम कर लूंगा।

वो कहते फिरते थे अपना
है जनम जनम का बंधन
जो महकाये रहता इसको
तुम ही तो हो वो चंदन।

मैं तेरी खुशबू वो तमाम
दामन में अपने भर लूंगा।
जो नहीं मिली तू मुझे तो
मैं उम्र तमाम कर लूंगा।।

कभी गीतों में जो लिखी मैंने
तू ही वो अमिट कहानी है
जो मैं हूँ दरिया समंदर का
तो तू ही मेरी रवानी है।

तेरी सांसों की डोर से अपने  
साँसों को बांध, मैं रख लूंगा
जो नहीं मिली तू मुझे तो
मैं उम्र तमाम कर लूंगा।।

 ✍️©️अजय कुमार पाण्डेय   
         हैदराबाद                  
         01जुलाई,2020

प्यार में पीर लें पीर को प्यार दें

 प्यार में पीर लें पीर को प्यार दें एक दूजे को हम इतना अधिकार दें, के प्यार में पीर लें पीर को प्यार दें। एक कसक सी न रह जाये दिल में कहीं, ...