कुछ बता
ऐ शहर तू बता
क्यूँ तू उदास है?
सब कुछ तो है
मगर क्यूँ आस है?
ऐ शहर तू बता
क्यूँ तू उदास है?
कब हुई है सुबह
कुछ नहीं है पता
कब हुई शाम है
कुछ नहीं है पता।
सन्नाटों की चीरती
कैसी आवाज़ है।
ऐ शहर तू बता
क्यूँ तू उदास है?
पास हरदम तेरे
लोग आते रहे
हसरतें कितनी ही
लोग लाते रहे।
उन हसरतों की
तुझको भी आस है।
ऐ शहर फिर बता
क्यूँ तू उदास है?
हसरतें पूरी हों
ये जरूरी नहीं
मंजिलें सारी पाएं
जरूरी नहीं।
हौसलों पे मगर
कैसा अभिशाप है।
ऐ शहर फिर बता
क्यूँ तू उदास है?
चल पड़े हैं यहां
राह में हम सभी
ले के उम्मीदें यहां
साथ में हम सभी।
मंज़िलें फिर मिलेंगी
ये विश्वास है।
ऐ शहर फिर बता
क्यूँ तू उदास है?
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
20जुलाई,2020
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