2-कजरी

परदेस बसे अपने प्रिय के विरह में डूबी नव विवाहिता दुल्हन के विचार, जब सावन में कजरी उत्सव मनाया जाता है, को मैंने कजरी लोकगीत के रूप में व्यक्त करने का प्रयास किया है--

           -कजरी          

अरे रामा टिप टिप बरसे सवनवा
के लागे नाही मनवा रे हारी।
रहि रहि अंखिया से बरसे सवनवा
के लागे नाही मनवा रे हारी।।

पिया गए हैं कमाए
उनके कइसे हम बुलाये
नाही चिट्ठी हौ न कौनो खबरिया
के लागे नाही मनवा रे हारी।।

पुरवाईया तड़पाये
तन मन में अगन लगाये
पिया बिना मुश्किल हौ सवनवा
के लागे नाही मनवा रे हारी।।

बिन पियतम आंगन सूना लागे
रात रात भर अंखिया जागे
सुनि सुनि के लोगन के सब बतिया
के लागे नाही मनवा रे हारी।।

सावन बरसे, जियरा तरसे 
याद में तेरे नयना बरसे
बिन तोहरे नाही भाये ई सुरतिया
के लागे नाही मनवा रे हारी।।

यहि जीवन के कवन भरोसा
कब का होइ किसने देखा
बिन तोहरे कछु ना भाये, सजनवा
के लागे नाही मनवा रे हारी।।

अब न हमके तू तड़पावा
जल्दी से संदेश भिजावा
महका देता हमरो तू सवनवा
के लागे नाही मनवा रे हारी।।

 ✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       13जुलाई,2020
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