संभलना जरूरी है।
विकल पड़े हैं जन जन सारे, निकल रहा सब गुस्सा।
विकल हो रही मन की गांठें, निकल रहा बन किस्सा।।
जनता सब हलकान पड़ी है, सूझे राह न कोई।
टूट रही है सब्र की माला, जोड़े कैसे कोई।।
घर घर में चिंता पसरी है,लाएं कैसे रोटी।
ऐसा ही जो हाल रहा तो, मुश्किल जीवन ज्योती।।
अब भी नहीं अगर संभले तो, मुश्किल होगा जीवन।
मुरझाएगा जीवन सारा, मुरझायेगा उपवन।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
11जुलाई,2020
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