पौरुष आसान कहाँ।
सच है नारी जैसा बनना
है दुनिया में आसान नहीं,
त्याग तपस्या उनके जैसा
अपनाना आसान नहीं।
पर, पुरुषों का जीवन भी
जी पाना आसान कहां,
पुरुषों की इस दुनिया में
पौरुष इतना आसान कहां।
कितने पुरुषों को देखा है
मैंने जीवन को सुलझाते
अपना सुख दुख भूल सभी
औरों का जीवन अपनाते।
ना जाने दुनिया की कितनी
कड़वाहट को वो जीते हैं,
हंसते रहते ऊपर से पर
भीतर जख्मों को सीते हैं।
जीने को तो जीते हैं पर
जीवन इतना आसान कहां,
पुरुषों की इस दुनिया में
पौरुष इतना आसान कहां।
रोजी रोटी के चक्कर मे
कितनी ही ठोकर खाता है
गिर जाता है कभी कहीं पर
कहीं स्वाभिमान दबाता है।
मुश्किल होता जीवन जब
पैसों से तोला जाता है
उसके कर्तव्यों को सारे
टुकड़ों में मोला जाता है।
टुकड़ों का जीवन जीना
कब इतना आसान रहा
पुरुषों की इस दुनिया में
पौरुष इतना आसान कहां।
प्रेम भले करते हों कितना
व्यक्त कहां कर पाते हैं
जब कहने की बात चली
कायर ही कहलाते हैं।
जाने कितने सपनों का
बोझ उठाकर जीते हैं
निज सपने त्याग दिए हैं
औरों के सपने जीते हैं।
औरों के सपनों को जीना
होता इतना आसान कहां,
पुरुषों की इस दुनिया में
पौरुष इतना आसान कहां।
फूट फूटकर रोना चाहे
मुश्किल से रो पाते हैं
अपने मन की बातों को
मुश्किल से कह पाते हैं।
कहने को वाचाल बहुत हैं
कुछ कह पाना मुश्किल है
दिल में कितने भाव छुपाते
सब कह पाना मुश्किल है।
स्त्री जीवन कठिन है माना
पुरुष बनना आसान कहां
दुनिया चाहे कुछ भी बोले
पौरुष इतना आसान कहां।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
29जुलाई,2020
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