खत्म मेरे वनवास करो।
मन में जब से आन बसे हो
कुछ भाव नए बन आये हैं।
शब्दों में थिरकन जागी है
नवगीत नए बन आये हैं।
हर क्षण अब मेरे नयनों में
सुंदर सा मुखड़ा रहता है।
पलकें खुलें, बंद हो चाहे
चांद का टुकड़ा रहता है।
इन नयनों में आन बसे तुम
नींद कहां अब आती है।
आती जाती सांसे भी अब
तेरे ही गीत सुनाती हैं।
मेरे गीतों, कविताओं में
बन प्रेम निखरकर आती हो
मैं प्रतिपल लिखता हूँ जिसको
तुम उसको प्रतिपल गाती हो।
तुम बिन अपना जीवन सूना
सब तुम पर अर्पित करता हूँ।
तन-मन-धन औ जीवन
सारा
सब आज समर्पित करता हूँ।
आ करके जीवन में मेरे
रंग भरो, उल्लास भरो।
बहुत सह चुका एकाकीपन
खत्म मेरे वनवास करो।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
09जुलाई,2020
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