अपनी बात अलग है थोड़ी।
कितने लोगों को देखा है
औरों के जीवन अपनाते
कितने ही लोगों को देखा
इतिहास पुराना दुहराते।
पर जीवन के रण में मैंने
अपनी छाप अलग है छोड़ी
कोई चाहे कुछ भी बोले
अपनी बात अलग है थोड़ी।।
चलते हैं सब राहों में
लिए हाथ को हाथों में
मैंने जीवन जीना सीखा
आंधी में तूफानों में।
तूफानों में कश्ती डूबी
लेकिन आस कभी ना छोड़ी
कोई चाहे कुछ भी बोले
अपनी बात अलग है थोड़ी।
प्यार किया जब प्यार किया
दिल और जान सब वार दिया
रिश्तों की मर्यादा समझी
जैसा जो था स्वीकार किया।
कभी नहीं छोड़ा कुछ मैंने
बस रिश्तों की डोरी जोड़ी
चाहे कोई कुछ भी बोले
अपनी बात अलग है थोड़ी।।
जो भी हूँ मैं जैसा भी हूँ
अपनी दुनिया में जीता हूँ
जितने घाव मिले जीवन में
उन घावों को मैं सीता हूँ।
पैबंद लगे उन घावों पर
मलहम की आस न छोड़ी
कोई चाहे कुछ भी बोले
अपनी बात अलग है थोड़ी।।
✍️©अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
01अगस्त,2020
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