इक गीत सुनाने आया हूँ।




इक गीत सुनाने आया हूँ।  


लिए साज हाथों  में  फिर
इक गीत सुनाने  आया हूँ,
जीवन की सारी बातों को
मैं   समझाने   आया    हूँ।

जीवन सुख दुख का संगम 
इसके   हैं   लाखों   पहलू
इक दूजे का साथी बनकर
कुछ तुम सहना, कुछ मैं सहलूं।

बुरे काम का इस दुनिया में
मिलता नहीं कभी कोई फल
अच्छे कामों का  प्यारे
दुनिया में ना दूजा हल।

ऐसी ही कुछ गीतों को
आज सुनाने आया हूँ,
लिए साज हाथों में मैं
इक गीत सुनाने आया हूं।।

बचपन की सारी शैतानी
यौवन की सारी नादानी
जज्बातों की सारी बातें
बीत चुकी जो सारी कहानी।

उन सारी बातों को मैं
फिर याद दिलाने आया हूँ,
लिए साज हाथों में मैं
इक गीत सुनाने आया हूँ।।

जीवन के अंतिम पल में
सब खुद को तनहा पाते हैं,
कुछ दूरी तक साथ हैं चलते
फिर साथ छोड़ सब जाते हैं।

अंत सफर सबका निश्चित है
सब मिट्टी में मिल जाना है
मोह यहां फिर काहें करना
जग तो आना जाना है।

जीवन की इस सच्चाई को
मैं बतलाने आया हूँ,
लिए साज हाथों में मैं
इक गीत सुनाने आया हूँ।।

 ✍️©अजय कुमार पाण्डेय
 हैदराबाद
 30जुलाई,2020

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