सारा जग खुशहाल जब, खेती करे किसान।।
खेतों में जब हल चले, सीना धरती चीर।
नई कोंपलें फूटती , हरती जग की पीर।।
आंधी हो तूफान हो, या होए बरसात।
जीवन कटता खेत में, दिन हो या हो रात।।
नैनों में सपने लिए, तके सरे आकाश।
हरपल खटता खेत में, लेता ना अवकाश।।
विश्वास पलकों के कोरों से ढलके जाने कितने सपन सलोने, लेकिन इक भी बार नयन ने उम्मीदों का साथ न छोड़ा। मेरी क्या हस्ती औरों में जो उनका अनुरंजन...
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