तन्हाइयों के साये में
मैं तुमको याद कर लूंगा
जो नही मिली तू मुझे तो
मैं उम्र तमाम कर लूंगा।।
संग संग तुम्हारे जो
गुजरे हैं उम्र का आलम
उन्हीं पलों से मैं अपनी
सुबह औ शाम कर लूंगा।
वो कहते फिरते थे अपना
है जनम जनम का बंधन
जो महकाये रहता इसको
तुम ही तो हो वो चंदन।
मैं तेरी खुशबू वो तमाम
दामन में अपने भर लूंगा।
जो नहीं मिली तू मुझे तो
मैं उम्र तमाम कर लूंगा।।
कभी गीतों में जो लिखी मैंने
तू ही वो अमिट कहानी है
जो मैं हूँ दरिया समंदर का
तो तू ही मेरी रवानी है।
तेरी सांसों की डोर से अपने
साँसों को बांध, मैं रख लूंगा
जो नहीं मिली तू मुझे तो
मैं उम्र तमाम कर लूंगा।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
01जुलाई,2020
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