उम्मीद की सीपियाँ
चल पड़े हैं मेरे दो कदम
जीवन की सुनी राह में
लिए जलाए दीप आस का
दृढ़ता भर विश्वास में।
राह कठिन या मुश्किल आये
रुकने का कोई मोल नहीं
लाख प्रलोभन पथ में आये
मेहनत का कोई तोल नहीं।
हिम का उच्च शिखर आंखों में
और भुजाओं में अरुणाई
लिये सीपियाँ उम्मीदों की
पग में सागर की गहराई।
नहीं झुका है नहीं झुकेगा
मस्तक निज हित के आगे
अपनी ही रफ्तार चलेगा
दुनिया चाहे जितना भागे।
जो गिरा कभी इस पथ में
तो हार नहीं मानूंगा मैं
चाहे जितनी बाधा आये
रार नहीं ठानूँगा में।
जो भटका इस राह में कभी
तो खुद को समझाऊंगा
लाख अंधेरा घना भले हो
आशा के दीप जलाऊंगा।
जीवन चलने का नाम यहां
मैं अविरत चलता जाऊंगा
चल पड़े हैं मेरे दो कदम
अब पथ में ना सुस्ताऊंगा।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
18जुलाई,2020
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