सात फेरे।


    सात फेरे       

जितने ही अरमानों के
मैं पुष्प खिलाये बैठी हूँ
उन सारे अरमानों को
मैं आज समर्पित करती हूँ।

मेरे सुख अब तेरे हैं
तेरे दुख अब मेरे हैं
इक दूजे के भावों का
सम्मान सुनिश्चित करती हूं।

छोड़ा आंगन बाबुल का
पग द्वार तिहारे रखती हूं
संग संग तेरे चलने का
प्रण आज सुनिश्चित करती हूँ।

मैं भी तुमसे प्रण करता हूँ
बस तुमको ही चाहूंगा
गीत बुनूँगा साथ तुम्हारे
साथ  तिहारे  गाऊंगा।

कैसा भी हो पथ जीवन का
साथ नहीं मैं छोडूंगा
धूप खिले या छांव मिले
मैं हाथ कभी ना छोडूंगा।

तुमसे ही मेरा जीवन है
तुमसे ही सारा उपवन है
मेरे साँसों की सरगम तुम
सुर-ताल कभी ना छोडूंगा।

आज बने जो इक दूजे के
ये सात जनम का बंधन है
जीवन के इस नए सफर में
इक दूजे का अभिनंदन है।।

 ✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
         हैदराबाद
         07जुलाई,2020

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