पलकों के किनारे इक आंसू।

पलकों के किनारे इक आंसू।  

पलको के किनारे पे ठहरा
इक आंसू कितने वर्षों से,
जाने कितना कुछ है झेला
इक आंसू कितने वर्षों से।

चाहा कितनी ही बार यहां
पलकों से होकर गिर जाऊं,
मिल जाऊं मिट्टी में जाकर
अपना जीवन भी तर जाऊं।

आंखों से तेरे गिरा कभी तो
सोचो किधर मैं जा पाऊंगा
मिटा जो मिट्टी में गिरकर
ना पास तुम्हारे आ पाऊंगा।

इक तुमसे अपना नाता है
इन आंखों में मैं बसता हूँ
दुख में तेरे साथ  दुखी मैं
खुशियों में तेरे हँसता हूँ।

आंखों से पलकों तक मैं
जाने कितनी ही बार बना
छोड़ चले सब साथ भले ही
पर साथ हमारा रहा बना।

कितने पल जीवन में आये
कभी हँसाये कभी रुलाये
उन पल की सारी यादों को
मन में हरदम रहे दबाए।

घर के अंधियारे कोने में
जब भी तुमको पाया है
तेरे नैन भिंगोने से पहले
मेरा दिल भी रोया है।

जब रिश्तों की कड़वाहट ने
तुम्हें अकेला छोड़ दिया
यूँ लगा मुझे भी तब उस पल
तुमको मिल सबने तोड़ दिया।

तेरी आँखों की सुर्खी को
मैंने नम कर डाला था
तब संभाला तुमने मुझको
मैंने भी तुम्हें सँभाला था।

छोड़ चले जब सारे अपने
लगे टूटने सारे सपने
जब मिथ्या परिहास हुआ
जब सब कुछ लगा बिखरने।

उस पल तेरा साथी बनकर
दुःख में भी मुस्काया था
दर्द तुम्हारा सब पीकर के
आंखों में भाव छुपाया था।

दो पल का ये जीवन अपना
मैं नाम तुम्हारे करता हूँ
पलकों का मैं आंसू ठहरा
पलकों में तेरे रहता हूँ। 

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       26जुलाई,2020


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