तुमको ही स्वीकार किया।




तुमको ही स्वीकार किया। 

मन के सूने अंबर पर
दस्तक कितनी ही बार दिया
हर बार तुम्हें सम्मुख पाया
तुमको ही स्वीकार किया।

यादों में हर वादों में
जीवन की बारातों में
तुम कुछ ऐसे आन बसे
बस तेरा ही दीदार किया।

मन की चार दीवारी में
मूरत तेरी बैठाये हूँ
दिन रात पूजता हूँ तुमको
तुमसे ही लगन लगाए हूँ।

जब-जब भी पलकें मूँदी हैं
बस तेरा ही दीदार किया
हर बार तुम्हें सम्मुख पाया
तुमको ही स्वीकार किया।

इन नैनो में नींद नहीं
जब याद तुम्हारी आती है
यादें भी पागल ठहरीं
बस द्वार तुम्हारे जाती हैं।

नींद चैन औ अपनापन
सब तुम पर आज लुटाता हूँ
और नहीं कुछ मेरा है अब
सब तुम पर आज लुटाता हूँ।

तुम पर सब कुछ अर्पित कर के
सब कुछ है मैंने प्राप्त किया
हर बार तुम्हें ही सम्मुख पाया
तुमको ही स्वीकार किया।।

✍️©अजय कुमार पाण्डेय
     हैदराबाद
     08जुलाई,2020

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