प्रतिवाद जरूरी है।

प्रतिवाद जरूरी है।  

सत्ता की ताकत पर अपने
ना इतना अभिमान करो।
जनता के भावों को समझो
उनका ना अपमान करो।

जनमत की ताकत के आगे
और नहीं कुछ टिकता है
ये वो दौलत है जो बस
भावों पर ही झुकता है।

इनकी भावों का ना तुम
किंचित भी अपमान करो
बुल्डोजर की ताकत पर
ना इतना अभिमान करो।

सत्ता चाहे जैसी भी हो
चिरकाल नहीं वो चलती है
जीवन का पहिया भी सुन लो
उमर के संग ही ढलती है।

आज मिली जो सत्ता तो फिर
सम्मान सदा इसकी करना
ये ऐसा मलहम है जिससे
घाव सदा जनता के भरना।

सब्जबाग दिखला कर के
हरबार भरमा नहीं सकते
चिकनी चुपड़ी बातों से
हरबार बहला नहीं सकते।

सत्ता की बेचैनी देखो
कैसे खेल दिखाती है
सत्यकाम को मौन कराने
कितनी हद तक जाती है।

अपराधी व अपराधों पर
चलना अभियान जरूरी है
जो भी सत्ता आड़े आये
उसका अवसान जरूरी है 

सत्ता का प्रतिवाद कभी भी
राजद्रोह ना हो सकता
ये वो आजादी है जिसको
कोई छीन नहीं सकता।

संविधान की गोदी में ही
अभिव्यक्तियां सब पलते है
इसकी छतरी के नीचे ही
राजसुख सभी मिलते हैं।

राष्ट्र तभी खुशहाल बनेगा
सत्यकाम जब मुस्कायेगा
सत्ता का सूरज जन जन में
प्रेम भाव ला पायेगा।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
      हैदराबाद
      10सितंबर,2020









खुद से प्यार करो।

खुद से प्यार करो।  

ये जीवन कितना सुंदर है
आओ इसका दीदार करें
कुछ भी करने से पहले हम
आओ खुद से भी प्यार करें।

ये जीवन है अनमोल यहां
इसे आशंका में न तोलो
इसके संकेतों को समझो
इसे अवसादों में न घोलो।

जीवन रिश्तों की क्यारी है
ये सुंदर सी फुलवारी है
ना तेरी है ना मेरी है
ये सबकी जिम्मेदारी है।

मां, बाप, बहन, भाई इसके
आवश्यक पोषक तत्व यहां
बेटी, बेटा औ पत्नी सब
जीवन उपयोगी सत्य यहां।

इनके बिना न जीवन चलता
और न कोई सपना पलता
इनसे ही हैं सारी खुशियां
इनसे ही जीवन है मिलता।

संगी, साथी, नाते, रिश्ते
इसकी छाँवों में पलते हैं
जब इसका वरदान मिले है
तब जीवन उपवन खिलते हैं।

इक दूजे के लिये यहां तुम
सम्मान सदा मन में रखना
कैसी भी विपदाएं आएं
विश्वास सदा सब पर रखना।

विश्वास यहां वो डोरी है
जिसपर ये जीवन चलता है
अपनेपन के ही भावों से
सुंदर सा जीवन पलता है।

छोटी छोटी सारी बातों
का मान सदा सबकी रखना
राग, द्वेष औ मिथ्याओं से
बचकर के सब हरदम रहना।

झूठ नहीं रिश्तों में बोलो
हरदम तोल मोल कर बोलो
जब ज्यादा आवश्यक लागे
तब ही अपने मुख को खोलो।

शब्दों की पीड़ाएँ कितने
ही अमिट घाव दे जाते हैं
औ शब्द कभी मलहम बनकर 
नासूर यहां भर जाते हैं।

झूठ बोलकर संबंधों में
तुम दांव नहीं कोई चलना
विश्वास मिटा इक बार कहीं
मुश्किल है फिर जीवन चलना।

वेद, पुराण, औ ऋषि, मनीषी
यही बात कहते हैं सारे
सामंजस्य रिश्तों की कुंजी
इनसे बनते रिश्ते न्यारे।

जीवन को यदि जीना है तो
सब रिश्तों का सम्मान करो
मन के भाव समझना है तो
पहले खुद से ही प्यार करो।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       06सितंबर,2020









साथी की भी सुन लेना।

साथी की भी सुन लेना।  

दुर्गम पथ चुनने से पहले
साथी अपना चुन लेना
मन की कुछ करने से पहले
साथी की भी सुन लेना।

पथ दुर्गम हो चाहे जितना
पूरा सबको करना है
पग की सारी पीड़ाओं को
मिलजुल कर के हरना है।

पंथ भले दुष्कर हो तेरा
औ सीमाएं निश्चित हों
कुशल पथिक की भाँती चलना
सब शंकाएं अनुचित हों।

पग पग पर वादों का अंबर
तुझको पूरा करना है
लोभ, मोह, निज स्वार्थ से ऊपर
राह तुझे ही चुनना है।

राह मगर चुनने से पहले
जन गण मन की सुन लेना
मन की कुछ करने से पहले
साथी की भी सुन लेना।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       05सितंबर,2020




प्रतीक्षा।

प्रतीक्षा               

मौन प्रतीक्षारत जीवन
करता है स्वीकार यहां
पंथ चुनौती देता है
कर लो आंगिकार यहां।

इक विश्वास उमड़ता हर पल
पल पल प्रति जीवन पथ पर
और खींचता जाता हमको
मंगलकारी जीवन पथ पर।

जीवन अपना रेल की तरह
साथ-साथ चलते हैं सुख-दुःख
अगणित पड़ाव मिलते पथ में
पर जीवन नहीं बदलता रुख।

ठहरा जो भी पथ में इसके
लोक उसे फिर भुला है
चलना जिसने स्वीकार किया
जग की बाहों में झूला है।

ठहरे पल में रुक जाता है
हो जाता है जीवन वंचित
चलता रहता जो इस पथ में
धैर्य, पुण्य करता वो संचित।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
    हैदराबाद
    20अगस्त, 2020

स्वार्थ से लोभ।




स्वार्थ से क्षोभ। 

आत्मा तक बिक रही है, खरीदार चाहिए
चुका सके मूल्य ऐसा, असरदार चाहिए
हैं खड़े बाजार में सब, बाट अपनी जोहते
ज़िंदगी के हर मोड़ पे, धन अपार चाहिए।

है गांव की खबर नहीं, शहर से क्या वास्ता
राह चली जिस भी डगर, है वही अब रास्ता 
है अस्वीकार मुझको, अब कुछ भी राह में
सिर्फ मुझे दृढ़ता भरा, एतबार चाहिए।

थोड़े पैसों के लिए, हैं सभी जोड़-तोड़
स्वप्न आकार ले सकें, हैं सभी तोड़-फोड़
अवरोध व प्रतिरोध से, है नहीं अब वास्ता
करे निज स्वप्न साकार, वही धार चाहिए।

बाजार के अधीन हो, दांव सभी चल रहे
है नहीं खबर अभी तक, खुद को ही छल रहे
इतने गहरे स्वार्थ से, मोह ना लगाइए
ऐसे सभी बर्ताव से, एतराज चाहिए।

मन के अंदर झांक कर, खुद को भी देखना
बेचने से पूर्व मगर, त्याग सभी देखना।
अपने सारे त्याग से, सीख लेना चाहिए
लोभ मोह निज स्वार्थ को, जीत लेना चाहिए।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       03सितंबर,2020

प्रत्यंचा।

प्रत्यंचा।   

जीवन की प्रत्यंचा हरदम
कस कर थामे रहना तुम
कितने हों अवरोध, रुकावट
सबको छलनी करना तुम।

पर जीवन का उद्देश्य महज
रण का भाव नहीं होता
इससे पीछे हटना लेकिन
उचित स्वभाव नहीं होता।

एक पराजय से जीवन में
प्रलय नहीं है कोई आती
यदि प्रत्यंचा ढीली ना हो
लक्ष्य संधान सहज बनाती।

इसीलिए इस जीवन रण में
गांडीव सदा थामे रहना
लक्ष्य साधने की खातिर
प्रत्यंचा  साधे रहना।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
      हैदराबाद
     02सितंबर,2020

मील का पत्थर।

मील का पत्थर।   

थोड़ी थोड़ी दूरी पर ही
मैं निष्कंटक मौन खड़ा हूँ
आते जाते सारे पथ में
अटल अकंटक मौन पड़ा हूँ।

हर आने जाने वाले को
मैंने ही राह दिखाई है
पथ से भटके हर पंथी को
पथ की पहचान बताई है।

अपने इस जीवन में मैंने
जाने कितने मौसम देखे
धूप-छांव की रंगत देखी
कितने ही परिवर्तन देखे।

राहें कितनी भी सुनी हों
मैंने धैर्य नहीं खोया है
खायी ठोकर चाहे जितनी
लेकिन नहीं कभी रोया है।

जीवनपथ में तुम भी अपने
अटल इरादे लेकर चलना
चाहे कितने कंटक आएं
हँस कर के तुम सबसे मिलना।

मंजिल के नजदीक पहुँचकर
नहीं कभी खुद पर इतराना
फिर भी यदि शंका कुछ आए
तुम मुझसे मिलने आ जाना।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
      हैदराबाद
      01सितंबर,2020


मन के पट खोल।

मन के पट खोल। 

मन के पट तू खोल रे
मीठे मीठे बोल रे
कुछ भी कहने से पहले
शब्दों को तू तोल रे।

शब्दों से एहसास जगे हैं
रिश्तों में मिठास जगे हैं
बिगड़ी सब बातें बन जाती
अपनेपन की प्यास जगे हैं।

क्या तेरा है क्या है मेरा
ये दुनिया इक रैनबसेरा
काहे को अभिमान करे
ये जग जोगी वाला फेरा।

इक दिन सबको है जाना
क्या खोना, औ क्या पाना
राहों में जो भी मिल जाये
हँस करके सबको अपनाना।

हाथ तेरे न कुछ आएगा
जो भी पाया रह जायेगा
खुलेगी जब कर्मों की गठरी
सत्कर्म तेरा बस काम आएगा।

ऋषि महात्माओं की है वाणी
जीवन है ये अनमोल रे
नैतिकता की राह चला चल
भक्ति में जीवन घोल रे।

मन के पट तू खोल रे
मीठे मीठे बोल रे
कुछ भी कहने से पहले
शब्दों को तू तोल रे।

 ✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
         हैदराबाद
         01सितंबर,2020

धीरे धीरे पांव बढ़ाये जा।

धीरे धीरे पांव बढ़ाये जा।


जीवन पथ पर धीरे धीरे
मितवा पांव बढ़ाये जा।
राहों की सब बाधाओं को
हँस कर तू अपनाये जा।

राहों के ये कंटक सारे
बिखरा ना तुझको पाएंगे
तेरी उम्मीदों के आगे
स्वतः मार्ग दे जाएंगे।

मन की सारी बेचैनी को
अब तू दूर भगाए जा।
जीवन पथ पर धीरे धीरे
मितवा पांव बढ़ाये जा।।

वादों औ कसमों में पड़कर
खुद को ना उलझाना तुम
जग की बिफरे तानों से
मन को ना तड़पाना तुम।

मन में अपने भाव जगा कर
खुद की राह बनाये जा।
जीवन पथ पर धीरे धीरे
मितवा पांव बढ़ाये जा।।

पंथ अकेला भले हो तेरा
ना आशंकित होना तुम
सत्यकाम बनकर तुम चलना
मत परिवर्तित होना तुम।

सत की ध्वजा लिए हाथों में
हर पल तू मुस्काए जा।
जीवन पथ पर धीरे धीरे
मितवा पांव बढ़ाये जा।।

 ✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        01सितंबर,2020

सूरज भी है ढलता।

सूरज भी ढलता है।

लोकतंत्र ने रूप है बदला
सूरज ने भी धूप है बदला
चांद सितारे वही पुराने
लेकिन सबका नूर है बदला।

जिस सूरज के आने से
जग रोशन हो जाता है
उस सूरज का ताप बढ़े जब
शीतल देह जलाता है।

दूर बैठ कर चंदा लेकिन
देख सभी को बहलाता है
अपने शीतल भावों से
उम्मीद नई जगाता है।

लोकतंत्र में सत्ता भी कुछ
सूरज सा रूप दिखाती है
पूरे करने को वादे सब
वो भी दांव चलाती है।

सब अच्छा रहता है तब तक
जनहित होता रहता जब तक
जब सत्ता में स्वार्थ पनपता
तब मुश्किल में पड़ती जनता।

सत्ता के मंदिर में जब तक
स्वार्थ प्रवृत्ति हावी होगी
लोकतंत्र सब दूषित होगा
पूजा नहीं प्रभावी होगी।

मुफ्तखोरी के वादे सारे
बस मन को बहलाते हैं
क्षण भर का सुख मिलता है
दूषित भविष्य कर जाते हैं।

बहुमत का पर्याय हमेशा
मन की बात नहीं होता है
जन गण मन की गहराई का
भाव समझना भी होता है।

जैसे सूरज की गरमी का
तोड़ घरों में अपनाते हैं
वैसे ही उद्दवेलित हो जन
बदलाव नया ले आते हैं।

सूरज फिर भी ढलता रहता
अपना ताप बदलता रहता
चंदा की छांवों में पलकर
अगले दिन फिर चलता रहता।

वैसे ही ये लोकतंत्र है
मिश्रित भाव जरूरी है
सामाजिक समरसता का भी
होना एहसास जरूरी है।

लोकतंत्र है तब तक हँसता 
जब तक उसमें जीवन पलता
पर अपनी करने से पहले
मत भूलो सूरज भी है ढलता।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
      हैदराबाद
      01सितंबर,2020







गांव की खुशबू।

गांव की खुशबू।       

नेनुआ, भिंडी औ तररोई  
क्या कुछ याद दिलाती है
छप्पर पर लटकी वो लौकी
मुँह में स्वाद जगाती है।

आलू के खेतों की क्यारी
हरी मटर की तरकारी
लहसुन,धनिया की वो खुशबू
घर आंगन महकाती है।

पालक,मेथी औ चौराई
बथुआ मन ललचाता है
दूर देश में बसे सभी को
गांवों की याद दिलाता है।

गन्ना के रस भीनी खुशबू
गुड़ की महक, राब की खुशबू
भूनी आलू सोंधी सोंधी
मन में लोभ जगाती है।

भिंडी, पटर, करेला, कटहल
सबके मन को भाती है
इनके बिना न भाए भोजन
पंगत में स्वाद जगाती है।

बाल्टी में आमों की खुशबू
केला औ अमरूद की खुशबू
जामुन, बेल, आंवला कितने
रोगों को दूर भगाती है।

आज शहर की जिंदगी हमको
देख कहां ले आयी है
बंद हुआ डिब्बों में जीवन
घुट घुट कर तड़पाती है।

पैसा चाहे खूब कमा लो
शहरों में महल बना लो
मगर गांव की खुशबू दिल से
निकल नहीं कभी पाएगी।

असली भारत गांव बसे है
सत्य नहीं मिट पायेगा
दूर देश में बसे सभी को
मिट्टी की याद दिलाएगा।।

 ✍️©️अजय कुमार पाण्डेय 
       हैदराबाद
       30अगस्त,2020

मुझे याद है जरा जरा।




मुझे याद है जरा जरा।  

वो प्यार की हसीन डगर
चले जो बनके हमसफ़र
वो चाहतों की बारिशें
मुझे याद है जरा जरा।

वो ज़ुल्फ़ की घटा तेरी
कांधों पे बेसबब गिरी
पलकों की वो सिफारिशें
मुझे याद है जरा जरा।

तेरी अदा, वो शोखियों
लवों की वो सरगोशियां
बाहों की वो गुजारिशें
मुझे याद है जरा जरा।

वो वक्त की पाबंदियां
वो चीखती खामोशियाँ
वो दिल की मौन ख्वाहिशें
मुझे याद है जरा जरा।

माना कि हम मिले नहीं
साथ दूर तक चले नहीं
पर प्यार की वो राहतें
मुझे याद है जरा जरा।

 ✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       29अगस्त,2020

बिटिया को आशीष।

बिटिया को आशीष।    

ओ मेरी प्यारी बिटिया सुन
जीवन की सारी खुशियां सुन
देख तुझे पुलकित होता मन
हँसती घर की गलियां सुन।।

जिस पल तू घर में आई
जीवन की बगिया मुस्काई
मरुधर से इस जीवन में
बसंत बहार तू ले आई।।

उदास जो तू हो, मुरझाए
घर के सभी खिलौने सुन।
तेरे हँसने से हँसता हैं
घर के कोना कोना सुन।।

है आशीष हमारा तुझको
जग की सारी खुशियां पाए
जीवन का हर पथ सुंदर हो
कदमों में कलियाँ बिछ जाए।।

तेरी खुशियाँ ही मेरे
जीवन का है सपना सुन।
और नहीं कुछ माँगू प्रभु से
पूरा हो तेरा सपना सुन।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय 
 हैदराबाद
 29अगस्त, 2020

तुम्हारी याद।

तुम्हारी याद।             

भींगी भींगी रात सुहानी
याद तुम्हारी ले आई।
कसमें, वादे, प्यार, वफ़ा की
बात पुरानी ले आई।

इक दूजे के पहलू में हम
कितने सपने बुनते थे
ऐसे खोये इक दूजे में
और नहीं कुछ सुनते थे।

मधुर चाँदनी पावस की फिर
आज वहीं फिर ले आई।
भींगी भींगी रात सुहानी
याद तुम्हारी ले आई।।

उन यादों की परछाईं
मीठे सपनों की अँगनाई
पल पल मुझे छकाती औ
नेह जगाती ये पुरवाई।

पुरवाई के पवन झँकोरे
चाह वही फिर ले आई।
भींगी भींगी रात सुहानी
याद तुम्हारी ले आई।।

मुझे सुलाने की खातिर
साथ जगे सब चंदा तारे
नींद ने भी उम्मीद न छोड़ी
पलकों के आगे, पर हारे।

हार-जीत की इस दुविधा में
मिली मुझे बस रुसवाई।
भींगी भींगी रात सुहानी
याद तुम्हारी ले आई।।

छोड़ मुझे जब जाना था
यादें वो सारी ले जाते
साथ गुजारी जो हमने
वो रात सुहानी ले जाते।

तेरे इस आने जाने से
जान पे मेरे है बन आई।
भींगी भींगी रात सुहानी
याद तुम्हारी ले आई।।

 ✍️©अजय कुमार पाण्डेय
          हैदराबाद
          28अगस्त,2020

उम्र।

              उम्र।         


ज़िंदगी की रेत पर, उम्र फिसलती रही
लिए चंद ख्वाहिशें, मौन मचलती रही।।

उम्र के हर ठौर पर, मुश्किलों का दौर पर
ख्वाहिशों का बोझ ले, खुद से ही लड़ती रही।

ज़िंदगी की रेत पर, उम्र फिसलती रही।।

शब्दो से ही घाव थे, शब्दों से ही भाव थे
शब्द के वो मायने, उम्र बदलती रही।

ज़िंदगी की रेत पर, उम्र फिसलती रही।।

दर्द का वो धुंधलका, साफ हो सके कभी
चाहतें लिए यही, आंख छलकती रही।

ज़िंदगी की रेत पर, उम्र फिसलती रही।।

लोगों की भीड़ ने, पत्थर दिल कहा जिसे
मौन वो मोम सी, बूँद बूँद पिघलती रही।

ज़िंदगी की रेत पर, उम्र फिसलती रही।।

हालात की चोट से, जितना रौंदते रहे
उतनी हो मुखर यहां, राह निखरती रही।

ज़िंदगी की रेत पर, उम्र फिसलती रही।।

छोटा हो या हो बड़ा, सबका एक रूप है
एक रूप भाव ले, निष्पक्ष बढ़ती रही।

ज़िंदगी की रेत पर, उम्र फिसलती रही।।

वक्त के साथ सब, अपनी राह देख लो
सूर्य की भी रोशनी, हर शाम ढलती रही।

ज़िंदगी की रेत पर, उम्र फिसलती रही।।

ना कर गुरुर तू, अपनी किसी बात पर
आखिरी सफर में उम्र, खुद से ही बिछड़ती रही।

ज़िंदगी की रेत पर, उम्र फिसलती रही
लिए चंद ख्वाहिशें, मौन मचलती रही।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        28अगस्त,2020

गीत-प्रेम दीवानी।

गीत- प्रेम दीवानी।  

मैं तो दीवानी हुई
सपनों की रानी हुई
डूबी मैं तुझमें ऐसे
ज्यूँ मीरा दीवानी हुई।।

सुध-बुध भूली ऐसे
अपनी खबर ही नहीं
डूबी मैं तुझमें ऐसे
अपनी कदर ही नहीं।

आन बसे जो दिल में
ये सांसें सुहानी हुई।
डूबी मैं तुझमें ऐसे
ज्यूँ मीरा दीवानी हुई।।

तुझसे शुरू हो करके
तुझपे ही खत्म हूँ मैं
नहीं और चाहत दिल में
बस तेरी चाहत हूँ मैं।

तेरे ही सपने देखूं
रातें सुहानी हुई।
डूबी मैं तुझमें ऐसे
ज्यूँ मीरा दीवानी हुई।।

इतनी है चाहत मेरी
साथ तेरा न छूटे
रूठे भले जग सारा
मुझसे पिया ना रूठे।

पिय की खुशी ही मेरे
होठों की लाली हुई।
डूबी मैं तुझमें ऐसे
ज्यूँ मीरा दीवानी हुई।।

मैं तो दीवानी हुई
सपनों की रानी हुई
डूबी मैं तुझमे ऐसे
ज्यूँ मीरा दीवानी हुई।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       26अगस्त,2020




चिट्ठी तेरे नाम की।



चिट्ठी तेरे नाम की।  

चिट्ठी तेरे नाम लिखी जो
उसको बस पढ़ लेना तुम।
मन की सारी बातें उसमें
मौन, मगर सुन लेना तुम।

थोड़ी सी बातें अपनी हैं
थोड़ी जग की रुसवाई है
थोड़े शिकवे अपनेपन के
औ चाहत की गहराई है।

थोड़ी ही बातें हैं उसमें
पूरा मगर समझ लेना तुम।
चिट्ठी तेरे नाम लिखी जो
उसको बस पढ़ लेना तुम।

साथ निभाने का वादा
राह दिखाने का वादा
भूल नहीं जाना प्रियवर
वादा निभाने, का वादा।   

वादों की पीड़ाओं को
मौन मगर सह लेना तुम।
चिट्ठी तेरे नाम लिखी जो
उसको बस पढ़ लेना तुम।

उम्मीदों का आसमान तुम
जीवन में मेरे लाये
अपनेपन की बातों से
कितने ही सपने दिखलाये।

उन सपनों की गठरी को
पलकों से चुन लेना तुम।
चिट्ठी तेरे नाम लिखी जो
उसको बस पढ़ लेना तुम।

जीवन, वो ही जीवन है
जो उम्मीदों पर चलते हैं
इक दूजे का साथी बनकर
सब पीड़ाएँ हरते हैं।

मन की सारी पीड़ाओं को
आज समझ फिर लेना तुम।
चिट्ठी तेरे नाम लिखी जो
उसको बस पढ़ लेना तुम।।

 ✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        22अगस्त,2020

प्रतीक्षा।

 



प्रतीक्षा             

मौन प्रतीक्षारत जीवन
करता है स्वीकार यहां
पंथ चुनौती देता है
कर लो अंगीकार यहां।

इक विश्वास उमड़ता हर पल
पल पल प्रति जीवन पथ पर
और खींचता जाता हमको
मंगलकारी जीवन पथ पर।

जीवन अपना रेल की तरह
साथ-साथ चलते हैं सुख-दुःख
अगणित पड़ाव मिलते पथ में
पर जीवन नहीं बदलता रुख।

ठहरा जो भी पथ में इसके
लोक उसे फिर भूला है
चलना जिसने स्वीकार किया
जग की बाहों में झूला है।

ठहरे पल में रुक जाता है
हो जाता है जीवन वंचित
चलता रहता जो इस पथ में
धैर्य, पुण्य करता वो संचित।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
    हैदराबाद
    20अगस्त, 2020

सम्मान।

सम्मान         

तेज हवा के झोंकों ने
जीवन पर कितना वार किया
जीवन भी अलबेला ठहरा
हँस कर के स्वीकार किया।

हर भोर नई जिम्मेदारी
ले द्वार पलक का खटकाती
शाम सुहानी फिर आकर
हौले से खुद सहलाती।

शाम सुबह के बीच खड़ी
सपनों की सुंदर डोरी
कभी मिला है साथ सभी का
और कभी खुद नाते जोड़ी।

जिम्मेदारी की गठरी ले
जीवन पथ जो चलते हैं
उनके ही कांधों पर कितने
सुंदर सपने पलते हैं।

इनकी लहरों से भींगे जो
जीवन तर कर जाते हैं
मिलता है सम्मान जगत में
प्रेम सभी से पाते हैं।।

 ✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        19अगस्त,2020

श्वेत भाव।

   श्वेत भाव             

श्वेत गगन हैं, श्वेत मेघ हैं
श्वेत धवल हैं हिम की बूंदें
श्वेत भाव ले प्रकृति सारी
बरसाती अमृत की बूंदें।

श्वेत रंग जब जलद बरसता
रंग धरा में तब आता है
धरती तब पुलकित होती है
रंग हरा तब मिल पाता है।

हिमगिरि से सागर के तट तक
श्वेत चांदनी फैली है
इतना श्वेत चरित्र है जग का
फिर गंगा क्यों मैली है।

श्वेत वसन पहचान देश की
श्वेत भाव मुस्कान देश की
श्वेत चित्त है शांति प्रदाता
सुख, समृद्धि, सम्मान देश की।

फिर क्यों रंग बदलता है
इंसानों का जीवन इतना
आओ इससे हम सीखें
हर रंगों में खुद ढलना।।

 
 ✍️©️अजय कुमार पाण्डेय 
        हैदराबाद 
        19अगस्त,2020

एक प्रश्न।

एक प्रश्न         

पूछ रहा है देश हमारा
लाल किले की प्राचीरों से
कब तक वादे बहलायेंगे
निर्धनता को तकदीरों से।

पूछ रही है सूखी आंतें
सत्ता की अंगनाई से
भारत कब बाहर आएगा
निर्धनता की गहराई से।

पूछ रहे हैं गांव के रास्ते
शहरों की चिकनी सड़कों से
उनसे मेल कभी क्या होगा
बिन गड्ढ़ों औ बिन झटकों के।

पूछ रही टपकती खपरैल
सत्ता के रणवीरों से
मुक्ति इनको कब मिलेगी
शीत,ग्रीष्म व बरसातों से।

पूछ रही सागर की लहरें
नदियों से औ तटबंधों से
मुक्त धरा कब होगी अपनी
जाति, धर्म वाले फंदों से।

पूछ रहा है खड़ा हिमालय
सत्ता के गलियारों से
कब तक भारत छलनी होगा
गद्दारों के वारों से।

पूछ रही सरहद की आंखें
भारत के जिम्मेदारों से
कब तक शरण मिलेगी भीतर
कुछ जयचंदी व्यवहारों को।

जाने कितने प्रश्न दबे हैं
जन गण मन के सीने में
इन प्रश्नों का हल मिलने तक
मुश्किल होगा फिर जीने में।

भृष्ट आचरण सता लालच
मुद्दों से बस भटकाएगा
विकास सब बाधित होगा
हाथ नहीं कुछ आएगा।

इन मसलों के हल की खातिर
जन गण को ही उठना होगा
अपने अधिकारों की सुरक्षा
अब हमको ही करना होगा।

लोभ मोह लालच से हटकर
जीवन हमको चुनना होगा
नई सदी के नूतन भारत
का सपना हमको बुनना होगा।।

 ✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
 हैदराबाद
 17अगस्त,2020

श्री राम महिमा।

🙏🌹श्री राम महिमा 🌹🙏     

🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️
   
 ।।दोहा।।

राम नाम के जाप से, मिलती शक्ति अपार।
जो सुमिरै नित नाम ये, मिले ज्ञान भंडार।।

 ।।चौपाई।। 

राम नाम है जीवन नायक, नित्य जपो है शुभ फल दायक।
इससे ही है जीवन सुरभित, सकल विश्व होता है पुलकित।
इनके जप से कष्ट मिटे हैं, रोग दोष संताप छंटे हैं।
हर घर में खुशहाली आती, प्रेम भावना सबमें लाती।
दुःख दरिद्रता दूर मिटे हैं, जो भी इनकी राह चले हैं।
रिश्तों की महिमा समझाई, तब पुरुषोत्तम नाम कहाई।। 

  ।।दोहा।।

इनसे ही जीवन मिला, मिला सभी को ज्ञान।
नीति प्रज्ञ का मार्ग मिला, मिला धर्म को मान।।

 ।।चौपाई।।

झूठ नहीं जीवन में बोले, हर पल सोच समझ कर बोले।
बात कही सो सीधी वाणी, संग चले इनके कल्याणी।
जिसने अपना जीवन वारा, राम नाम का बना सहारा।
जिनकी किरपा यदि मिल जाये, मानस का जीवन तर जाए।
इनसे जग को ज्ञान मिला है, रिश्तों का सम्मान मिला है।
जीवन क्या हमको समझाया, त्याग समर्पण पाठ पढ़ाया।

   ।।दोहा।।

इनकी किरपा से बने, जीवन ये खुशहाल।
इनके ही आशीष से, मिटे सकल अँधकाल।।

   ।।चौपाई।।

धन्य धन्य है भारत भूमी, जिसने राम कृष्ण को जाया।
गीता का उपदेश दिया है, जीवन सार हमें समझाया।
राम राम है नाम अपारा, सकल जगत ने है स्वीकारा।
जिनकी महिमा कही न जाए, लेखनी शब्द कहां से लाए।
इतनी किरपा सब पर करना, अवसाद सकल जगत का हरना।
जीवन सब सुरभित हो जाए, खुशियों की कलियाँ मुस्काए।

   ।।दोहा।।

किरपा जिसपर राम की, जीवन बने महान।
घर घर बाढ़े प्रेम धन, हो सबका सम्मान।।

   ।।चौपाई।।

नाम अनेकों अकथ कहानी, बहु विधि जाए कथा बखानी।
निर्गुण सगुण बिच नाम सुंदर, जपो इसे हो जीवन सुंदर।
राम नाम जपि जागहिं जो भी, छूटहिं प्रपंच बनते योगी।
ब्रह्म सुखहि सब अनुभव कीन्हा, राम नाम रस जीवन पीन्हा।
सच्चे मन से नाम पुकारे, मिटे कुसंकट होहि सुखारे।
ज्ञान ध्यान सब कुछ मिल जाये, सकल मनोरथ भाव जगाए।

    ।।दोहा।।

राम नाम विश्वास है, राम नाम निष्काम।
राम नाम से जग चले, बनते बिगड़े काम।।
राम नाम है बड़ यहां, देता शक्ति अपार।
इससे ही होता यहां, सकल जगत उद्धार।।
राम नाम से प्रीत कर, राम नाम से रीत।
राम नाम से सब मिले, राम नाम से जीत।।

 🕉️सियावर रामचंद्र की जय🕉️
🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩

 ✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
      हैदराबाद
      16अगस्त, 2020

भारत महिमा।

भारत महिमा

हम भारत के वासी हैं
भारत का गीत सुनाते हैं।।

भारत की इस माटी पर
क्यों ना हो अभिमान हमें
राह दिखाई जीने की
दिलवाया सम्मान हमें।

है उन्नत इतिहास हमारा
दुनिया ने जिसको स्वीकारा
जिसके हर इक कदमों पर
दुनिया ने तन मन धन वारा।

जिसने सबको राह दिखाया
नैतिकता है क्या समझाया।
ऐसी धरती की माटी पर
हम नित नित शीश झुकाते हैं।

हम भारत के वासी हैं
भारत का गीत सुनाते हैं।।

दुनिया को इसने राम दिए
नानक, बुद्ध महान दिए
दुनिया को गीता समझाया
अच्छे बुरे की राह बताया।

इसने वेद पुराण दिए
जग को चाणक्य महान दिए
हमें विदुर की नीति सिखाई
मानस ग्रंथ महान दिए।

ऐसी पावन माटी को हम
नित नित शीश झुकाते हैं।
हम भारत के वासी हैं
भारत का गीत सुनाते हैं।।

शिक्षा, संस्कृति, सभ्यता का
नित नूतन प्रतिमान दिए
नालंदा औ तक्षशिला संग
काशी, मथुरा से ज्ञान दिए।

जिसने प्रेम सिखाया जग को
हम जिससे जीवन पाते हैं।
हम भारत के वासी हैं
भारत का गीत सुनाते हैं।।

राणा प्रताप, लक्ष्मीबाई
वीर शिवाजी, नानाजी
तोड़ गुलामी की जंजीरें
अलख जगाई आज़ादी की।

राजगुरु, सुखदेव, भगतसिंह
बिस्मिल, सुभाष, आजाद दिए
लाल, बाल, पाल दिए हैं
जवाहर, गांधी महान दिए।

ऐसी पावन जननी को हम
नित नित शीश झुकाते हैं।
हम भारत के वासी हैं
भारत का गीत सुनाते हैं।।

इस माटी की गौरव गाथा
अनजाना क्या गा पायेगा
इसका इक इक कण पावन है
दुश्मन समझ न पायेगा।

जिनके मंसूबे बेमानी है 
उनको है एलान यहां
वक्त अभी है बदलें खुद को
वरना मुश्किल राह यहां।

भारत ये भूभाग नहीं है
तुम जिसकी चाहत करते हो
वक्त अभी संभालो खुद को
बेमौत यहां क्यूँ मरते हो।

कण कण में है साहस इसके
हर बच्चा बच्चा शोला है
शत्रु के नापाक इरादों को
बस तलवारों से तोला है।

हैं अहिंसा के अनुयायी हम
पहला वार नहीं करते
स्वाभिमान को छेड़े कोई
हम स्वीकार नहीं करते।

ऐसी पावन धरती का
गुणगान यहां हम गाते हैं।
हम भारत के वासी हैं
भारत का गीत सुनाते हैं।।


✍️©️अजय कुमार पाण्डेय 
     हैदराबाद
     15अगस्त, 2020

अभिनय



अभिनय              

दुनिया ये इक रंगमंच है
नित नूतन दिखता व्यवहार
अभिनय की श्रेणी पर निर्भर
जीवन के सारे व्यापार।।

कोई रोता कोई हंसता
कोई सोता कोई जगता
हर मौके पर सबको अपना
अभिनित अभिनय ही है जँचता।

दूजे का सत भी लागे है
दोयम दर्जे का व्यवहार।
दुनिया ये इक रंगमंच है
नित नूतन दिखता व्यवहार।।

घूमो सारे बाजारों में
चौराहों या चौबारों में
हर चौक पर लाखों चेहरे
चिन्हित इच्छित सबका व्यवहार।

अभिनय सफल वही है समझो
जो ढल जाए मौसम अनुसार।
दुनिया ये इक रंगमंच है
नित नूतन दिखता व्यवहार।।

✍️ ©️अजय कुमार पाण्डेय
   हैदराबाद

आज़ादी- इक जिम्मेदारी

आज़ादी- इक जिम्मेदारी


गूंजी जो सन सत्तावन में
फिर आवाज़ उठाना है
जन जन को आह्लादित कर दे
ऐसा भाव जगाना है।।

देशप्रेम का घृत हो जिसमें
भाईचारा बाती हो
जिसकी हर लौ की लहरें
गीत प्रेम का गाती हों।

ऐसे लौ की धारा से
जीवन रोशन कर जाना है।
गूंजी जो सन सत्तावन में
फिर आवाज़ उठाना है।।

आवाज़ उठे आज यहां जो
भारत की पहचान बने
भूले बिसरे इतिहासों का
फिर नूतन सम्मान बने।

अपने उन इतिहासों को
फिर इक बार बताना है।
गूंजी थी जो सन सत्तावन में
फिर आवाज़ उठाना है।।

वार करे जो व्यभिचार पर
अनैतिकता पर, भ्रष्टाचार पर
काटे बेड़ी अवसादों की
वार करे जो जातिवाद पर।

एक सूत्र में देश पिरोए
ऐसी ललकार जगाना है।
गूंजी थी जो सन सत्तावन में
फिर आवाज़ उठाना है।।

रोटी-कमल प्रतीक बना था
आज़ादी के दीवानों का
जीवन रण संगीत बना था
आज़ादी के परवानों का।

उनके उस दीवानेपन पर
नित नित शीश झुकाना है।
गूंजी थी जो सन सत्तावन में
फिर आवाज़ उठाना है।।

भूख, गरीबी, बेकारी पर
जीवन की हर लाचारी पर
मूलभूत सुविधाएं सारी
गिरती शुचिता, बीमारी पर।

कुव्यवस्था जो भी फैली है
उनको दूर भगना है।
गूंजी थी जो सन सत्तावन में
फिर आवाज़ उठाना है।।

कदम कदम पर ताक लगाए
कितने हैं शत्रु सूंघ रहे
खंडित भारत की चाहत ले
सालों से हैं ऊंघ रहे।

ऐसे सारे शत्रु को हमको
चिर-परिचित नींद सुलाना है।
गूंजी थी जो सन सत्तावन में
फिर आवाज़ उठाना है।।

झूठे वादे तड़पाते हैं
लोभ-प्रलोभन बहलाते हैं
कठपुतली जैसा करके
सबका जीवन दहलाते हैं।

ऐसे झूठे आडंबर का
तोड़ हमें समझाना है।
गूंजी थी जो सन सत्तावन में
फिर आवाज़ उठाना है। 

आज़ादी उपहार नहीं है
ये इक जिम्मेदारी है
इसके समुचित संचालन में
सबकी हिस्सेदारी है।

आज़ादी के अहसासों को
सबमें हमें जगाना है।
गूंजी थी जो सन सत्तावन में
फिर आवाज़ उठाना है।।

 ✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
 हैदराबाद
 13 अगस्त, 2020

व्यंग्य

व्यंग्य        

चुप चुप से क्यों बैठे हो
क्या कोई बात तो नहीं
पहले भी मिले हैं हम
ये कोई पहली मुलाकात तो नहीं।

ये कोई पहली दफा तो नहीं
पहले भी तो मिले थे ऐसे ही कहीं
पांच साल बाद ही सही, मिले तो हैं
इसमें कोई नई बात तो नहीं।

माना वादे पुराने अभी पूरे नहीं हुए
वादों का क्या, इक बार और सही
ये तो राजनीति का तसव्वुर है
कोई नई बात तो नहीं।

संसद से सड़क तक चर्चा आम है
जाति-धर्म की बात, संविधान का अपमान है
मगर वोट के लिए सब चलता है
जो ये तिकड़म नहीं अपनाता
वो फिर हाथ मलता है।

अब तो वादों व बातों की
आदत सी हो चुकी है
सालों से ढोते ढोते वादों की गठरी
लोकतंत्र की लानत तक हो चुकी है।

अब तो इसमें ही मजा आने लगा है
इसके बिना चुनावी भाषण
मंच से, सजा सा लगने लगा है।

अरे अब हम तो वादों से ही
खुश हो लिया करते हैं
पहले मौन समझने की कोशिश करते थे
अब मन को समझने की कोशिश करते हैं।।

 ✍️©️अजय कुमार पाण्डेय 
      हैदराबाद

ज़िंदगी-इक सफर

ज़िंदगी-इक सफर


ज़िंदगी है इक सफर, आये फिर चले गए
पास है वो आपका, दूर- कुछ निकल गए।

हर कदम पे प्रश्न है, जवाब सिर्फ आप हैं
लोक के निगाह का, निर्वाह सिर्फ आप हैं।
आप के जवाब से, कितने दिल मचल गए
ज़िंदगी है इक सफर, आये- फिर चले गए।।

किसी ने कुछ कहा नहीं, क्या सुना पता नहीं
दोष शून्य का है सब, कुछ हुआ पता नहीं।
ऐसा खेल खेलकर वो मुकर मुकर गए
ज़िंदगी है इक सफर, आये- फिर चले गए।।

चोट जो लगी कहीं, तो दर्द क्या हुआ कहीं
आंँख के जो अश्रु थे,मचल के क्यों गिरे नहीं।
आंँख के वो अश्रु भी, आंँख से चले गए
ज़िंदगी है इक सफर, आये- फिर चले गए।।

पूछते हैं लोग भी, क्या हुआ था उस घड़ी
क्या कहूँ मैं किसे, दिल पे जो मेरे पड़ी
दिल की जो भी दर्द थे ,
मौन हो निकल गए
ज़िंदगी है इक सफर, आये- फिर चले गए।।

जिम्मेदारियों का बोझ, कांँधों पे लिये रहे
हँस चले कदम-कदम,
उफ्फ मगर नहीं किये
उफ की आस थी जिन्हें, आस से बिखर गए
ज़िंदगी है इक सफर, आये- फिर चले गए।।

दूर से ही देखता हूँ, मौन सब मैं सोचता हूँ
हुई प्रथम ख़ता कहाँ, स्वयं से ही पूछता हूँ,
स्वयं के भी प्रश्न सारे, खुद से चुप टले गए
ज़िंदगी है इक सफर, आये-फिर चले गए।।

 राह बाकी  एक है
 चाह  भी तो एक है
जो फासले हैं दरमियाँ
 निशान उनके अब भी हैं

फासलों के चोट सारे, वक्त संग गुजर गए
ज़िंदगी है इक सफर, आये- फिर चले गए।।
 
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
     हैदराबाद
     09अगस्त,2020

नाजुक एहसास।

नाजुक एहसास। 

गुमसुम कहीं वो घबराती तो होगी
मेरे गीतों को वो गुनगुनाती तो होगी
याद आती होंगी जब भी बातें पुरानी
आंखों में सही वो शर्माती तो होगी।

वो बीते पल याद आते तो होंगे
गुजरे वो कल याद आते तो होंगे
चले साथ में दो कदम जो कभी
वो रास्ते तुम्हें याद आते तो होंगे।

महफ़िल में सखियां फिर बुलाती तो होंगी
पुराने नामों से चिढ़ाती तो होंगी
तन्हाई में जब भींगती होंगी पलकें
चुपके से खुद को समझाती तो होंगी।

पुरवा के झोंके फिर सहलाते तो होंगे
मीठी छुवन की याद दिलाते तो होंगे
संभालती होगी भले अपना आँचल
ये झोंके मगर लहराते तो होंगे।

सूरज वहीं फिर ढलता तो होगा
देख उसका मन मचलता तो होगा
मेरी याद अब भी आती तो होगी
पलकों से आंसू छलकता तो होगा।

गुमसुम कहीं वो घबराती तो होगी
मेरे गीतों को वो गुनगुनाती तो होगी।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
   हैदराबाद
   09अगस्त,2020

चौपाई।

     चौपाई           

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  🌸🌸🌸🌸🌸🌸
राम सिया राम सिया राम              
        जय जय राम।  
राम सिया राम सिया राम
       जय जय राम।       
🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚
दीप जलाओ हो उजियारा
मिटा आज अंधेरा सारा।।
राम सिया राम सिया राम
       जय जय राम।।
🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚
मंगल गीत सुनाओ सारे।
आये हैं प्रभु राम दुआरे।।
राम सिया राम सिया राम
        जय जय राम।।
🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚
पांच अगस्त यह तिथि पुनीता।
हरषित जन अभिजीत हरिप्रीता।।
राम सिया राम सिया राम
       जय जय राम।।
🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚
मंदिर का है काम पुनीता
हिल मिल गाओ मंगल गीता।।
राम सिया राम सिया राम
        जय जय राम।।
🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚
इतिहास बना आज अवध में।
मिला राम को धाम अवध में।।
राम सिया राम सिया राम
         जय जय राम।।
🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚
हरषित भए सभी नर नारी।
पुण्य भई है धरती सारी।।
राम सिया राम सिया राम
        जय जय राम।।
🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚
खग मृग और पशु पक्षी प्यारे।
झूमे नाचे गायें सारे।।
राम सिया राम सिया राम
      जय जय राम।।
🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚
राम राम है नाम अपारा।
सकल जगत ने है स्वीकारा।।
राम सिया राम सिया राम
       जय जय राम।।
🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚
कहे "अजय" यह जनम सुनहरा।
आज हटा है प्रभु का पहरा।।
राम सिया राम सिया राम
      जय जय राम।।
🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚
राम कथा सुंदर सुविचारी
शोक मिटे मन होए सुखारी।।
राम सिया राम सिया राम
       जय जय राम।।
🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚

 ✍️©️अजय कुमार पाण्डेय 
         हैदराबाद 
         05अगस्त,2020

अपनी बात अलग है थोड़ी।



 अपनी बात अलग है थोड़ी। 

कितने लोगों को देखा है
औरों के जीवन अपनाते
कितने ही लोगों को देखा
इतिहास पुराना दुहराते।

पर जीवन के रण में मैंने
अपनी छाप अलग है छोड़ी
कोई चाहे कुछ भी बोले
अपनी बात अलग है थोड़ी।।

चलते हैं सब राहों में
लिए हाथ को हाथों में
मैंने जीवन जीना सीखा
आंधी में तूफानों में।

तूफानों में कश्ती डूबी
लेकिन आस कभी ना छोड़ी
कोई चाहे कुछ भी बोले
अपनी बात अलग है थोड़ी।

प्यार किया जब प्यार किया
दिल और जान सब वार दिया
रिश्तों की मर्यादा समझी
जैसा जो था स्वीकार किया।

कभी नहीं छोड़ा कुछ मैंने
बस रिश्तों की डोरी जोड़ी
चाहे कोई कुछ भी बोले
अपनी बात अलग है थोड़ी।।

जो भी हूँ मैं जैसा भी हूँ
अपनी दुनिया में जीता हूँ
जितने घाव मिले जीवन में
उन घावों को मैं सीता हूँ।

पैबंद लगे उन घावों पर
मलहम की आस न छोड़ी
कोई चाहे कुछ भी बोले
अपनी बात अलग है थोड़ी।।

 ✍️©अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        01अगस्त,2020

इक गीत सुनाने आया हूँ।




इक गीत सुनाने आया हूँ।  


लिए साज हाथों  में  फिर
इक गीत सुनाने  आया हूँ,
जीवन की सारी बातों को
मैं   समझाने   आया    हूँ।

जीवन सुख दुख का संगम 
इसके   हैं   लाखों   पहलू
इक दूजे का साथी बनकर
कुछ तुम सहना, कुछ मैं सहलूं।

बुरे काम का इस दुनिया में
मिलता नहीं कभी कोई फल
अच्छे कामों का  प्यारे
दुनिया में ना दूजा हल।

ऐसी ही कुछ गीतों को
आज सुनाने आया हूँ,
लिए साज हाथों में मैं
इक गीत सुनाने आया हूं।।

बचपन की सारी शैतानी
यौवन की सारी नादानी
जज्बातों की सारी बातें
बीत चुकी जो सारी कहानी।

उन सारी बातों को मैं
फिर याद दिलाने आया हूँ,
लिए साज हाथों में मैं
इक गीत सुनाने आया हूँ।।

जीवन के अंतिम पल में
सब खुद को तनहा पाते हैं,
कुछ दूरी तक साथ हैं चलते
फिर साथ छोड़ सब जाते हैं।

अंत सफर सबका निश्चित है
सब मिट्टी में मिल जाना है
मोह यहां फिर काहें करना
जग तो आना जाना है।

जीवन की इस सच्चाई को
मैं बतलाने आया हूँ,
लिए साज हाथों में मैं
इक गीत सुनाने आया हूँ।।

 ✍️©अजय कुमार पाण्डेय
 हैदराबाद
 30जुलाई,2020

पौरुष आसान कहाँ।


पौरुष आसान कहाँ।

सच है नारी जैसा बनना
है दुनिया में आसान नहीं,
त्याग तपस्या उनके जैसा
अपनाना आसान नहीं।

पर, पुरुषों का जीवन भी
जी पाना आसान कहां,
पुरुषों की इस दुनिया में
पौरुष इतना आसान कहां।

कितने पुरुषों को देखा है
मैंने जीवन को सुलझाते
अपना सुख दुख भूल सभी
औरों का जीवन अपनाते।

ना जाने दुनिया की कितनी
कड़वाहट को वो जीते हैं,
हंसते रहते ऊपर से पर
भीतर जख्मों को सीते हैं।

जीने को तो जीते हैं पर
जीवन इतना आसान कहां,
पुरुषों की इस दुनिया में
पौरुष इतना आसान कहां।

रोजी रोटी के चक्कर मे
कितनी ही ठोकर खाता है
गिर जाता है कभी कहीं पर
कहीं स्वाभिमान दबाता है।

मुश्किल होता जीवन जब
पैसों से तोला जाता है
उसके कर्तव्यों को सारे
टुकड़ों में मोला जाता है।

टुकड़ों का जीवन जीना
कब इतना आसान रहा
पुरुषों की इस दुनिया में
पौरुष इतना आसान कहां।

प्रेम भले करते हों कितना
व्यक्त कहां कर पाते हैं
जब कहने की बात चली
कायर ही कहलाते हैं।

जाने कितने सपनों का
बोझ उठाकर जीते हैं
निज सपने त्याग दिए हैं
औरों के सपने जीते हैं।

औरों के सपनों को जीना
होता इतना आसान कहां,
पुरुषों की इस दुनिया में
पौरुष इतना आसान कहां।

फूट फूटकर रोना चाहे
मुश्किल से रो पाते हैं
अपने मन की बातों को
मुश्किल से कह पाते हैं।

कहने को वाचाल बहुत हैं
कुछ कह पाना मुश्किल है
दिल में कितने भाव छुपाते
सब कह पाना मुश्किल है।

स्त्री जीवन कठिन है माना
पुरुष बनना आसान कहां
दुनिया चाहे कुछ भी बोले
पौरुष इतना आसान कहां।।

 ✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        29जुलाई,2020
आज हुई है दूर उदासी
हर्षित हैं सब भारतवासी।।

आपद काल विपद है भारी
सुन लीजो प्रभु अरज हमारी।

पलकों के किनारे इक आंसू।

पलकों के किनारे इक आंसू।  

पलको के किनारे पे ठहरा
इक आंसू कितने वर्षों से,
जाने कितना कुछ है झेला
इक आंसू कितने वर्षों से।

चाहा कितनी ही बार यहां
पलकों से होकर गिर जाऊं,
मिल जाऊं मिट्टी में जाकर
अपना जीवन भी तर जाऊं।

आंखों से तेरे गिरा कभी तो
सोचो किधर मैं जा पाऊंगा
मिटा जो मिट्टी में गिरकर
ना पास तुम्हारे आ पाऊंगा।

इक तुमसे अपना नाता है
इन आंखों में मैं बसता हूँ
दुख में तेरे साथ  दुखी मैं
खुशियों में तेरे हँसता हूँ।

आंखों से पलकों तक मैं
जाने कितनी ही बार बना
छोड़ चले सब साथ भले ही
पर साथ हमारा रहा बना।

कितने पल जीवन में आये
कभी हँसाये कभी रुलाये
उन पल की सारी यादों को
मन में हरदम रहे दबाए।

घर के अंधियारे कोने में
जब भी तुमको पाया है
तेरे नैन भिंगोने से पहले
मेरा दिल भी रोया है।

जब रिश्तों की कड़वाहट ने
तुम्हें अकेला छोड़ दिया
यूँ लगा मुझे भी तब उस पल
तुमको मिल सबने तोड़ दिया।

तेरी आँखों की सुर्खी को
मैंने नम कर डाला था
तब संभाला तुमने मुझको
मैंने भी तुम्हें सँभाला था।

छोड़ चले जब सारे अपने
लगे टूटने सारे सपने
जब मिथ्या परिहास हुआ
जब सब कुछ लगा बिखरने।

उस पल तेरा साथी बनकर
दुःख में भी मुस्काया था
दर्द तुम्हारा सब पीकर के
आंखों में भाव छुपाया था।

दो पल का ये जीवन अपना
मैं नाम तुम्हारे करता हूँ
पलकों का मैं आंसू ठहरा
पलकों में तेरे रहता हूँ। 

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       26जुलाई,2020


हुआ तेरा मैं धीरे से।

     
 हुआ तेरा मैं धीरे से। 


हवाओं ने घटाओं से, कहा कुछ आज धीरे से
बड़ी मद्धम सुहानी है, तेरी हर बात धीरे से।

चाहत का तेरे हरसू, असर है आज साँसों में
हुआ मैं भी दिवाना सुन, तेरा फिर आज धीरे से।

तेरी चाहत का ये बादल, जगाता प्यास धीरे से
हवा पागल सी देखो फिर हुई है,  आज धीरे से।

हुई जो कुछ खता मुझसे, तो तुम बस  मुस्कुरा देना 
भुला दुनिया मैं कहता हूँ,  तेरा  हूँ आज धीरे से।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        25जुलाई,2020

वर्णमाला कविता।

हिंदी वर्णमाला कविता

*अ* से अनार, *आ* से आम
मेहनत से बनते सब काम।
*इ* से इमली, *ई* से ईख,
अच्छी सारी बातें सीख।
*उ* उल्लू, ** से ऊन
सबकी सारी बातें सुन।
** से ऋषि, हैं सभी महान
देते सबको अच्छा ज्ञान।
** से एक, ** से ऐनक,
बच्चे बिना ना भाए रौनक।
** से ओखली, ** से औरत,
सूरत से प्यारी है सीरत।
*अं* अंगूर, *:*  से कुछ नही
जीवन में डरना कभी नहीं।।

** से कबूतर, ** से खरगोश,
सोच समझ कर दिखाना जोश।
** से गमला, ** से घड़ी
सेना सीमा पर तैनात खड़ी।
** पर है पूर्ण विराम,
देता सभी को है आराम।।

** से चरखा, ** से छाता,
शिक्षा से संस्कार है आता।
** से जहाज, ** से झरना,
बुरा काम ना कोई करना।
** पर है पूर्ण विराम
देता है सभी को आराम।।

** से टमाटर, ** से ठठेरा,
सूरज निकला हुआ सवेरा।
** से डमरू, ** से ढक्कन
चुनमुन, गोपू को भाए मक्खन।
** पर भी है पूर्ण विराम
देता है सभी को आराम।।

** से तकली, ** से थन,
दूध से स्वस्थ हो तन औ मन।
** से दवात, ** से धनुष,
कर्म बनाये महान मनुष्य।
** से होता है नल
समय पर तू विद्यालय चल।।

** से पपीता, ** फल
फल खाने से मिलता बल।
** से बरगद, ** से भवन,
माँ की प्यारी लगे छुअन।
** से होती माँ की ममता
नहीं जगत में जिसकी समता।।

** से यज्ञ, ** से रथ,
चलो बनाएं सुंदर पथ 
** से लकड़ी, ** से वन,
सुंदर हो सबका जीवन।
** से शहद, ** षटकोण,
मतलब हेतु नाता ना तोड़।
** से सरौता, ** से हल
कोशिश से होती मुश्किल हल।
*क्ष* से क्षत्रिय, *त्र* से त्रिशूल,
उपवन से नहीं तोड़ो फूल।
*ज्ञ* से होता ज्ञानी और ज्ञान,
पढ़ो लिखो और बनो महान।।

 ✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        24जुलाई,2020

बारिश की बूंदें।

बारिश की बूंदें।   

रिमझिम बारिश की बूंदों ने
राग मिलन का गाया है,
लेकर कितनी ही सौगातें
खुशियों का मौसम आया है।

दूर कहीं पपीहरा गाए
कोयल ने राग सुनाया है,
मन में भरने भाव सुहाने
खुशियों का मौसम आया है।

कोंपल फूटें, फसलें झूमें
धरती ने श्रृंगार रचाया है,
तन मन में प्रेम जगाने
खुशियों का मौसम आया है।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       23जुलाई,2020

बाँसुरीवाला।

बाँसुरीवाला।  

लिए बांसुरी फिर आया हूँ
कितने ही सपने लाया हूँ
लाल, गुलाबी, नीले, पीले
रंगों की माला लाया हूँ।

आओ हिलमिल सारे आओ
नन्हे-मुन्ने प्यारे आओ
चुनमुन, गोपू, छुटकी, बड़की
सारे राजदुलारे आओ।

जितने रंग भरे जीवन में
सब रंग मैं संग लाया हूँ
बच्चे बूढ़े या हो कोई
सबका मैं बचपन लाया हूँ।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       23जुलाई,2020

क्यूँ याद दिलाते हो।

क्यूँ याद दिलाते हो। 

जो बीत चुकी उन यादों में
जीवन क्यूँ उलझाते हो,
जिन बातों से दर्द मिला है
क्यूँ उनकी याद दिलाते हो।

पल कितने आये चले गए
कुछ स्वप्न दिखाकर छले गए,
उन सपनों की नैया की
क्यूँ पतवार चलाते हो।

जीवन में बहुतेरे आये
कुछ अपने कुछ बने पराए,
जाने वाले चले गए जब
व्यर्थ में अश्रु बहाते हो।

याद करो अब बात सुहानी
नई घटी या याद पुरानी,
कष्ट मिले हैं जिन बातों से
क्यूँ उनसे दिल दहलाते हो।

जीवन गीतों की माला है
सुंदर मोरों की आला है,
मुरझाई यादों से इसकी
मोती क्यूँ बिखराते हो।।

जिन बातों से दर्द मिला है,
क्यूँ उनकी याद दिलाते हो।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       22जुलाई,2020

सीपियाँ।

            सीपियाँ


वक्त की रेत पर कुछ सीपियाँ बिखर गईं,
कुछ तो यूँ पड़ी रहीं और कुछ निखर गईं।

कर्म का असर है ये या कोई प्रभाव है,
कुछ रहीं शांत शांत और कुछ मुखर हुईं।

रूप के शहर में अनगिनत  चाहतें,
कुछ तो गुजर गईं और कुछ ठहर गईं।

क्षणभर का खेल ये या चाहतों का मेल है,
खैर जो भी बात हो रश्मियां प्रखर हुईं।

उम्र के पड़ाव पर पीछे देखा जब कभी,
रेत की वो सीपियाँ हँस कर गुजर गईं।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद

दोहे

खेती बाड़ी के बिना, चले कभी ना काम।
सारा जग खुशहाल जब, खेती करे किसान।।

खेतों में जब हल चले, सीना धरती चीर।
नई कोंपलें फूटती , हरती जग की पीर।।

आंधी हो तूफान हो, या होए बरसात।
जीवन कटता खेत में, दिन हो या हो रात।।

नैनों में सपने लिए, तके सरे आकाश।
हरपल खटता खेत में, लेता ना अवकाश।।


मेहनत अपनाना है।

मेहनत को अपनाना है।  


जीवन में जब जब हमको
नया सवेरा लाना है
त्याग कर अवसाद सारे
मेहनत हमें अपनाना है।

चल रहे कर्तव्य मार्ग पर
रुकना तेरा काम नहीं
प्रण जब ठाना है जीवन में
झुकना तेरा काम नहीं।

पथ की सब बाधाओं को
तुझको सरताज बनाना है।
त्याग कर अवसाद सारे
मेहनत हमें अपनाना है।।

✍️©️ अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद


क्रमांक                     कविता                               पृष्ठ संख्या 
76.                  कैसे दर्द लिखूँ                                79
77.                 नीड़ कहां नींव किधर                       80
78.                  मिल गयी                                      81
79.                 कुछ गुनगुनाऊँ                               82
80.                 मलहम के अवशेष                          83
81.                 अंतर्मन                                         84
82.                 कुछ तुम चलो, कुछ हम चलें          85
83.                 दर्द से परे पुनर्वास                         86
84.                 भारत की भूमि                              87
85.                 भारत के भाग्य विधाता                 88
86.                 योग                                             89
87.                 जैसा कर्म वैसा फल                       91
88.                 बुद्धपुर्णिमा                                    92
89.                 शापित होने से सँभलो                    93
90.                मानवता का एहसास दो                  94
91.                 धरती का कर्ज                               95
92.                 गृह निर्माण करें                            96
93.                हौसला रख तू ज़िंदगी                     97
94.                 एक कहानी लिखूं                          98
95.                 याद पिया की आई                        99
96.                 सावन खुशियों का मौसम            100
97.                 तुमने मधुमास लिखा                  101
98.                 प्रेम के तुम देवता हो                   102
99.                 हंसों का जोड़ा                             103
100.               साथ नहीं छोड़ेंगे                         104
101.               बन जाओ मेघ बरस जाओ          105
102.               कुछ बता                                   106
***





क्रमांक                         कविता                              पृष्ठ संख्या 
51.                 अगर साथ तुम न होते                          54
52.                 छवि उतनी होगी प्यारी                         55
53.                सब स्वप्न हो जाएंगे                             56
54.                 खत्म मेरे वनवास करो                         57
55.                तुमको ही स्वीकार किया                       58
56.                 बात अभी भी बाकी है                         59
57.                  उम्र तमाम कर लूंगा                         60
58.                 कुदरत का करिश्मा                            61
59.                 इक नया आगाज़ लिखते हैं                 62
60.                भूल नहीं सकता                                 63
61.                ढूंढता सत्य हर बार हूँ                         64
62.                तकदीर की लिखावट                          65
63.               निशा निमन्त्रण-चांद छूने की चाहत    66
64.                तुमको कोई कमी मिलेगी                   67
65.                तुमको लेकिन खबर नहीं थी               68
66.                 मुखर सत्य                                      69
67.                 गुलमोहर                                         70
68.                 मन ठहरा, मन बहता                        71
69.                 सच है ये मैंने माना                         72
70.                 पास उतना ही पाओगे                     73
71.                 मैं तुमको सुनूं                                 74
72.                 श्याम दीवानी                                 75
73.                 रिसते घाव                                     76
74.                 रात जागूँ सदा                                77
75.                 तड़प जाती नहीं                             78

क्रमांक                 कविता                                 पृष्ठ संख्या 
26.                 बचपन                                         28
27.                कायरता स्वीकार नहीं                    29
28.                सँभरण करो                                 31
29.                सुगम पथ                                     32
30.                 मधुर सांध्य                                 33
31.                 पदचिन्ह                                     34
32.                बटोही                                          35
33.                उम्मीदों का परिप्रेक्ष्य                    36
34.                संघर्षों की राह                               37
35.                जब तू लोरी गाती थी                     38
36.                 निर्झर                                         39
37.                 भोर का स्वागत करो                     40
38.                 प्रातः वंदन                                   41
39.                 बनो स्थिर अचर, न बनो अधीर     42
40.                 तेरा ही आँचल पाऊं                       43
41.                 नया उजाला लाना है                     44
42.                 चले चलो                                     45
43.                संपन्न करो                                 46
44.                जीवन को गुलजार बनाएं             47
45.                ये अभी शुरूआत है                       48
46.               हँस कर चलना होगा                      49
47.              जीवन बड़ा निराला है                     50
48.              गीत बनाकर गाता चल                 51
49.             मन पर किसका वश चलता है         52
50.             सात फेरे                                       53

प्यार में पीर लें पीर को प्यार दें

 प्यार में पीर लें पीर को प्यार दें एक दूजे को हम इतना अधिकार दें, के प्यार में पीर लें पीर को प्यार दें। एक कसक सी न रह जाये दिल में कहीं, ...