मील का पत्थर।

मील का पत्थर।   

थोड़ी थोड़ी दूरी पर ही
मैं निष्कंटक मौन खड़ा हूँ
आते जाते सारे पथ में
अटल अकंटक मौन पड़ा हूँ।

हर आने जाने वाले को
मैंने ही राह दिखाई है
पथ से भटके हर पंथी को
पथ की पहचान बताई है।

अपने इस जीवन में मैंने
जाने कितने मौसम देखे
धूप-छांव की रंगत देखी
कितने ही परिवर्तन देखे।

राहें कितनी भी सुनी हों
मैंने धैर्य नहीं खोया है
खायी ठोकर चाहे जितनी
लेकिन नहीं कभी रोया है।

जीवनपथ में तुम भी अपने
अटल इरादे लेकर चलना
चाहे कितने कंटक आएं
हँस कर के तुम सबसे मिलना।

मंजिल के नजदीक पहुँचकर
नहीं कभी खुद पर इतराना
फिर भी यदि शंका कुछ आए
तुम मुझसे मिलने आ जाना।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
      हैदराबाद
      01सितंबर,2020


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