श्वेत गगन हैं, श्वेत मेघ हैं
श्वेत धवल हैं हिम की बूंदें
श्वेत भाव ले प्रकृति सारी
बरसाती अमृत की बूंदें।
श्वेत रंग जब जलद बरसता
रंग धरा में तब आता है
धरती तब पुलकित होती है
रंग हरा तब मिल पाता है।
हिमगिरि से सागर के तट तक
श्वेत चांदनी फैली है
इतना श्वेत चरित्र है जग का
फिर गंगा क्यों मैली है।
श्वेत वसन पहचान देश की
श्वेत भाव मुस्कान देश की
श्वेत चित्त है शांति प्रदाता
सुख, समृद्धि, सम्मान देश की।
फिर क्यों रंग बदलता है
इंसानों का जीवन इतना
आओ इससे हम सीखें
हर रंगों में खुद ढलना।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
19अगस्त,2020
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें