प्रतिवाद जरूरी है।
ना इतना अभिमान करो।
जनता के भावों को समझो
उनका ना अपमान करो।
जनमत की ताकत के आगे
और नहीं कुछ टिकता है
ये वो दौलत है जो बस
भावों पर ही झुकता है।
इनकी भावों का ना तुम
किंचित भी अपमान करो
बुल्डोजर की ताकत पर
ना इतना अभिमान करो।
सत्ता चाहे जैसी भी हो
चिरकाल नहीं वो चलती है
जीवन का पहिया भी सुन लो
उमर के संग ही ढलती है।
आज मिली जो सत्ता तो फिर
सम्मान सदा इसकी करना
ये ऐसा मलहम है जिससे
घाव सदा जनता के भरना।
सब्जबाग दिखला कर के
हरबार भरमा नहीं सकते
चिकनी चुपड़ी बातों से
हरबार बहला नहीं सकते।
सत्ता की बेचैनी देखो
कैसे खेल दिखाती है
सत्यकाम को मौन कराने
कितनी हद तक जाती है।
अपराधी व अपराधों पर
चलना अभियान जरूरी है
जो भी सत्ता आड़े आये
उसका अवसान जरूरी है
सत्ता का प्रतिवाद कभी भी
राजद्रोह ना हो सकता
ये वो आजादी है जिसको
कोई छीन नहीं सकता।
संविधान की गोदी में ही
अभिव्यक्तियां सब पलते है
इसकी छतरी के नीचे ही
राजसुख सभी मिलते हैं।
राष्ट्र तभी खुशहाल बनेगा
सत्यकाम जब मुस्कायेगा
सत्ता का सूरज जन जन में
प्रेम भाव ला पायेगा।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
10सितंबर,2020
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