भींगी भींगी रात सुहानी
याद तुम्हारी ले आई।
कसमें, वादे, प्यार, वफ़ा की
बात पुरानी ले आई।
इक दूजे के पहलू में हम
कितने सपने बुनते थे
ऐसे खोये इक दूजे में
और नहीं कुछ सुनते थे।
मधुर चाँदनी पावस की फिर
आज वहीं फिर ले आई।
भींगी भींगी रात सुहानी
याद तुम्हारी ले आई।।
उन यादों की परछाईं
मीठे सपनों की अँगनाई
पल पल मुझे छकाती औ
नेह जगाती ये पुरवाई।
पुरवाई के पवन झँकोरे
चाह वही फिर ले आई।
भींगी भींगी रात सुहानी
याद तुम्हारी ले आई।।
मुझे सुलाने की खातिर
साथ जगे सब चंदा तारे
नींद ने भी उम्मीद न छोड़ी
पलकों के आगे, पर हारे।
हार-जीत की इस दुविधा में
मिली मुझे बस रुसवाई।
भींगी भींगी रात सुहानी
याद तुम्हारी ले आई।।
छोड़ मुझे जब जाना था
यादें वो सारी ले जाते
साथ गुजारी जो हमने
वो रात सुहानी ले जाते।
तेरे इस आने जाने से
जान पे मेरे है बन आई।
भींगी भींगी रात सुहानी
याद तुम्हारी ले आई।।
✍️©अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
28अगस्त,2020
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