स्वार्थ से क्षोभ।
आत्मा तक बिक रही है, खरीदार चाहिए
चुका सके मूल्य ऐसा, असरदार चाहिए
हैं खड़े बाजार में सब, बाट अपनी जोहते
ज़िंदगी के हर मोड़ पे, धन अपार चाहिए।
है गांव की खबर नहीं, शहर से क्या वास्ता
राह चली जिस भी डगर, है वही अब रास्ता
है अस्वीकार मुझको, अब कुछ भी राह में
सिर्फ मुझे दृढ़ता भरा, एतबार चाहिए।
थोड़े पैसों के लिए, हैं सभी जोड़-तोड़
स्वप्न आकार ले सकें, हैं सभी तोड़-फोड़
अवरोध व प्रतिरोध से, है नहीं अब वास्ता
करे निज स्वप्न साकार, वही धार चाहिए।
बाजार के अधीन हो, दांव सभी चल रहे
है नहीं खबर अभी तक, खुद को ही छल रहे
इतने गहरे स्वार्थ से, मोह ना लगाइए
ऐसे सभी बर्ताव से, एतराज चाहिए।
मन के अंदर झांक कर, खुद को भी देखना
बेचने से पूर्व मगर, त्याग सभी देखना।
अपने सारे त्याग से, सीख लेना चाहिए
लोभ मोह निज स्वार्थ को, जीत लेना चाहिए।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
03सितंबर,2020
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