


बन जाओ मेघ बरस जाओ।

कुछ बता।

उम्मीद की सीपियाँ।

प्रकृति की सौगातें।

श्याम दीवानी।

जीवन बड़ा निराला है।

सावन खुशियों का मौसम।

2-कजरी

1-कजरी।

अगर साथ तुम ना होते।

याद पिया की आयी।

गीत बनाकर गाता चल।

संभलना जरूरी है।

छवि उतनी होगी प्यारी।

यूँ तो है बड़ी तेज व्यवस्था।

खत्म मेरे वनवास करो।

तुमको ही स्वीकार किया।

सात फेरे।

चुनमुन चिड़ियाघर में।

मेंढक राजा बाजार चले।

गांव में हाथी आया।

मन पर किसका वश चलता है।

सब स्वप्न हो जाएंगे।

कुछ बात अभी भी बाकी है।

भारत के भाग्य विधाता।

तुमने मधुमास लिखा।

उम्र तमाम कर लूंगा।

कुदरत का करिश्मा।

इक नया आगाज़ लिखते हैं।

देखा है।

इतने ऊंचे आज उड़ो तुम।

भूल नहीं सकता।

प्रेम के तुम देवता हो।

मैं ढूंढता हर बार हूँ।

मैं दिखलाती हूँ।
चिड़िया और उसके चुग्गे के मध्य संवाद।
चित्र चिंतन- एक प्रयास
मैं दिखलाती हूँ
उड़ उड़ कर नील गगन में
चुग चुग कर दाना लाई हूँ
नन्हें-मुन्ने अब बाहर आओ
मैं सारी दुनिया लाई हूँ।
डाली-डाली, पत्ते-पत्ते
ढूंढी कलियाँ, ढूंढे फूल
तब जो पराग कण पाई
सब चुन-चुन कर लाई हूँ।
माँ मुझे मत भोला समझो
देख समझ सकता हूँ सबको
डाली-डाली कूद कूद कर
मैं अब तो आ जा सकता हूँ।
अभी पंख तेरे हैं छोटे
छोटा तू है काया छोटी
उड़ने में वक्त तुझे है
छूना फिर तू नभ की चोटी।
अभी तुमको उड़ना न आया
छोटा है , कोई भरमाता
बस कुछ दिन की बातें हैं
तब तक सब समझाती हूँ।
तब तक पंखों के आंचल से
आ जा तुझको सहलाती हूँ
सीमाहीन गगन तेरा है
तब तक मैं दिखलाती हूँ।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
26जून,2020

तक़दीर की लिखावट।

निशा निमंत्रण।

तुमको कोई कमी मिलेगी।

योग।

भारत के आगे तड़पेगा।

जैसा कर्म वैसा फल।

उचित न्याय सबका अधिकार।

तुमको लेकिन खबर नहीं थी

नन्हें पांव।

मुखर सत्य।

फिर नई शुरुआत कर देंगे।

पीड़ा को वरदान न मिलता सब गीत अधूरे रह जाते
यदि पीड़ा को वरदान न मिलता गीत अधूरे रह जाते पीड़ा को वरदान न मिलता सब गीत अधूरे रह जाते कितना पाया यहाँ जगत में कुछ भोगा कुछ छूट गया, कुछ ने ...
-
गीतों में कहानी साथी गीतों के मधुवन में हमने भी बोये गीत नए, कुछ गीतों में विरह वेदना औ कुछ में लिखी कहानी है। दो चार कहानी नयनों की दो चार ...
-
गीत की भावना शब्द दिल से चुने पंक्तियों में बुने, गीत की भावनाएं निखरने लगीं। कुछ कहे अनकहे शब्द अहसास थे, गीत की कामनाएं निखरने लगीं। द्वं...
-
श्री लक्ष्मण मूर्छा एवं प्रभु की मनोदशा चहुँओर अंधेरा फैल गया ऋषि ध्वनियाँ सारी बंद हुईं, पुलकित होकर बहती थी जो पौन अचानक मंद हुई। कुछ नहीं...