गीत की भावना
गीत की भावनाएं निखरने लगीं।
कुछ कहे अनकहे शब्द अहसास थे,
गीत की कामनाएं निखरने लगीं।
द्वंद्व कोई नहीं अब हृदय कोर में,
स्वयं से भी नहीं अब करूँ याचना।
रीझता भी नहीं देख दर्पण कहीं,
फिर किसी से कहो क्या करूँ प्रार्थना।
जब प्रकाशित हृदय भक्ति के पुंज से,
भक्तिमय भावनाएं सँवरने लगीं।
लोभ धन से नहीं लोभ तन से नहीं,
जो मिला पथ में मुझको स्वीकार है।
अब हलाहल मिले या मिले सोमरस,
अब अमरत्व भी मुझको बेकार है।
जब सुवासित हृदय सत्य के पुंज से,
सत्य की दीपिकाएँ निखरने लगीं।
भाव निकले हृदय के लिखा गीत में,
रीत कोई जगत की नहीं जानता।
जोड़ने को चला हूँ सदा मार्ग में,
और कोई गणित मैं नहीं जानता।
मन हो भाषित जब प्रेम विश्वास से,
प्रार्थनाएँ हृदय में उमड़ने लगीं।
✍️©अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
03 अप्रैल, 2025
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