चिड़िया और उसके चुग्गे के मध्य संवाद।
चित्र चिंतन- एक प्रयास
मैं दिखलाती हूँ
उड़ उड़ कर नील गगन में
चुग चुग कर दाना लाई हूँ
नन्हें-मुन्ने अब बाहर आओ
मैं सारी दुनिया लाई हूँ।
डाली-डाली, पत्ते-पत्ते
ढूंढी कलियाँ, ढूंढे फूल
तब जो पराग कण पाई
सब चुन-चुन कर लाई हूँ।
माँ मुझे मत भोला समझो
देख समझ सकता हूँ सबको
डाली-डाली कूद कूद कर
मैं अब तो आ जा सकता हूँ।
अभी पंख तेरे हैं छोटे
छोटा तू है काया छोटी
उड़ने में वक्त तुझे है
छूना फिर तू नभ की चोटी।
अभी तुमको उड़ना न आया
छोटा है , कोई भरमाता
बस कुछ दिन की बातें हैं
तब तक सब समझाती हूँ।
तब तक पंखों के आंचल से
आ जा तुझको सहलाती हूँ
सीमाहीन गगन तेरा है
तब तक मैं दिखलाती हूँ।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
26जून,2020
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