देखा है।
उच्च श्रृंग के शिखरों को
बादल से घिरते देखा है
मानसरोवर सम बूंदों को
कमलों पर गिरते देखा है।
छोटे-छोटे कण हाथों से
गिरते-संभलते देखा है
मुट्ठी भर आकाश लिए
कितनों को चलते देखा है।
उमसाते कोमल मन को
पावस में तरते देखा है
श्वेत धवल हंसा जोडों को
बूंदों से तरते देखा है।
माना आभासी दुनिया को
पल-पल रंग बदलते देखा
बेमौसम बरसात भी देखी
ओले ताड़ित कंपन देखा ।
रश्मि प्रभात की किरणों को
बादल में छिपते देखा है
लेकिन अगले ही पल में
सूरज को चलते देखा है।।
✍️©️ अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
29जून,2020
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